साधकोंकी गुरुपूर्णिमाके समय हुई अनुभूतियां:


सेवाके स्थानमें हुए परिवर्तनके कारण गुरुपूर्णिमाकी सेवामें उपस्थित रह पाना !

इस बार गुरुपूर्णिमा २०१४ के लिए मैं अपेक्षित सेवा नहीं कर पाया था परन्तु तब भी जब गुरुपूर्णिमासे पूर्व नियोजन हेतु पूज्या तनुजामांने एक बैठक रखी थी और उसमें उन्होंने बताया कि इस बार गाजियबादमें गुरुपूजनके लिए हमारा( मैं और मेरी धर्मपत्नीका) चयन हुआ है तो मनमें बहुत प्रसन्नता हुई, वैसे पूज्या मां गुरुपूजनके लिए साधकोंका चयन किस मापदंडपर करती है यह एक साधकके रूपमें हमारी समझसे परे है, परन्तु कुछ दिवस पश्चात् ज्ञात हुआ चला कि इस बार गुरुपूर्णिमा प्रत्येक वर्ष समान दो स्थानपर नहीं, अपितु पांच स्थानोंपर मनाई जायेगी और मुझे अब प्रवचन लेने हेतु अलीगढ जाना है तो अत्यधिक आश्चर्य हुआ कि ऐसी सेवा उन्होंने मुझे क्यों दी और मनमें एक प्रश्न स्वाभाविक था कि ऐसा क्या है जो मुझे ज्ञात नहीं जिसे पूज्या मांने पहले ही देख लिया और मुझे दिल्लीसे बाहर भेज दिया है | मनमें बार-बार इस प्रकारके प्रश्न उठ रहे थे; परन्तु  इन सब प्रश्नोंका उत्तर गुरुपूर्णिमाके दिवस मुझे तब ज्ञात हो गया जब मैं  अलीगढ पहुंचा और  लगभग सुबह ११ बजे ही मुझे एक निकट सम्बन्धीका दूरभाषपर सन्देश आया कि उनकी कोई पुरानी पारिवारिक समस्याको हल करने हेतु उसी दिवस उन्हें मुझसे कुछ सहयोगकी आवशयकता है | ऐसेमें यदि मैं गाजियबादमें रहता तो ख्रीस्ताब्द २०१४ के गुरुपूर्णिमामहोत्सवमें निश्चित ही सहभागी नहीं हो पाता,  पूज्य मां आपके चरणोंमें कोटि कोटि नमन, आप कितने अच्छेसे अपने प्रत्येक बालकका ध्यान रखती हैं | – श्री महेंद्र शर्मा, गाजियाबाद, उ.प्र. (१४.७.२०१४)

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सतर्कताके साथ नामजप और प्रार्थनाके कारण दुर्घटनाकी तीव्रता टली !

विगत अमावस्यासे पूर्व पूज्या तनुजामांने स्पष्ट रूपसे आश्रममें रह रहे सभी साधकोंसे कहा था कि गुरुपूर्णिमासे पूर्वकी यह अमावस्या है; अतः सभी साधक सतर्क रहें, अनिष्ट शक्तियां हमें हमारे गुरुपूर्णिमामें सहभागिता न हो इस हेतु अडचनें निर्माण कर सकती हैं | पूज्या मांने मुझसे विशेष रूपसे कहा था कि पूर्णकालिक होनेके उपरान्त यह आपकी प्रथम गुरुपूर्णिमा है, इसलिए आपने अत्यधिक सतर्क रहना है तथा नामजप एवं प्रार्थनापर ध्यान देना है | अमावस्याको जब हम गुरुपूर्णिमा निमित्त भिक्षाटनकी सेवा हेतु जा रहे थे तब भी पूज्या मांका यह निर्देश मेरे ध्यानमें था, हम तीन साधक दो, दोपहिया वाहनोंसे प्रस्थान कर रहे थे | मैं और सुभव गोएल, जिस वाहनपर थे उसे वे चलाना चाहते थे | जब उन्होंने वाहन आरम्भ किया तब मैंने उन्हें विशेष रूपसे सतर्क करते हुए भगवान शिवसे कवच मांगनेको कहा और हमने शिवजीसे कवच मांगा और हम सेवा हेतु निकल गए; किन्तु कुछ ही देर पश्चात् दुर्घटना हो गई  | आश्रम आनेपर पूज्या मांके कवच और प्रार्थना सम्बन्धी प्रश्नपर हमने उत्तर दिया कि हमने तो कवच मांगा था तथापि दुर्घटना हो गई |

उस समय इसका कारण हमारे समझमें नहीं आया और पूज्या मां भी आश्चर्यचकित थीं और व्यस्त भी थी, उन्होंने मेरे लिए हल्दीवाला गर्म दूध तैयार कर तथा मुझे विश्रामका निर्देश देकर कोई आवश्यक सामग्री क्रय करने हेतु एक साधकके साथ विपणि (विपणन केन्द्र, बाज़ार) चली गई | कुछ समय उपरान्त सभी अपनी-अपनी सेवाओंमें व्यस्त हो गए; किन्तु कुछ दिवस पूर्व अनायास मुझे ध्यान आया कि हम (मैं और सुभव) जिस वाहनपर थे उसके चक्रोंमें (पहियों) हवा न्यून थी और जिधर हम जाना चाहते थे उस मार्गमें गड्ढे बहुत थे, इसलिए हमारा उस वाहनसे जाना संभव नहीं था; क्योंकि वह निश्चित रूपसे पंचर हो जाता; अतः हमने वह वाहन हमारे साथ जा रही एक सहसाधिकाको देकर उनका वाहन ले लिया; किन्तु उसपर कवच मांगना भूल गए और अनिष्ट शक्तियोंने इसी चूकका लाभ उठाकर हमारी दुर्घटना करवा दी जो गुरुकृपासे निष्प्रभावी रहा | पूज्या मांकी कृपा हम सभीपर इसी प्रकार बनी रहे, यही ईश्वरसे कामना है | – श्री दिनेश दवे, उपासना आश्रम, गजियाबाद, उत्तर प्रदेश (१५.७.२०१४)

 



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