गुरु संस्मरण

श्रीगुरुके प्रति शरणागत होनेके कारण (भाग – १)


मैं अपने श्रीगुरुसे क्यों जुडी, यह कुछ लोग मुझसे पूछते रहते हैं, तो आजसे प्रतिदिन मैं आपको एक कारण बताऊंगी | मैंने बाल्यकालसे ही दूसरोंके लिए, अपने माता-पिताको त्यागमय जीवन व्यतीत करते हुए देखा था, वह भी आनंदपूर्वक ! मैं अपने आस-पास ऐसे व्यक्तिको ढूंढते रहती थी; किन्तु इसे दैवयोग कहें या और कुछ, मेरे […]

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श्रीगुरुकी महिमा


सितम्बर १९९९ में मैं गोवा आश्रममें गई थी, प्रथम दिवस जब मुझे उनका दर्शन मिला तो वे अपने कक्षमें थे । जब मैं उनके पास पहुंची तो वे खडे थे और कुछ कर रहे थे ………

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ऐसे हैं हमारे श्रीगुरु !


न दी दीक्षा, न दिया विधिवत गुरुमन्त्र । एक दृष्टिसे ही डाला हृदयमें अखण्ड नामजपका सूक्ष्म भावयन्त्र ।। देखें ऐसे अनेक गुरु । एकत्रित कर भीड देते हैं गुरुमन्त्र । तथापि न सिखा पाते अध्यात्मका गूढ तन्त्र ।। दे दिया ज्ञान स्थूल और सूक्ष्म अध्यात्मका । दिए बिना ही गुरुमन्त्र ।। हैं ऐसी ऊंचाईपर हमारे […]

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भिन्न माध्यमोंद्वारा मेरे स्वास्थयके लिए क्या आवश्यक है, उसे भी उपलब्ध करवाकर देना


सगुण गुरुके निर्गुण निराले माध्यम सूक्ष्म आसुरी शक्तियोंके सतत आक्रमणके कारण वर्ष २००६  से ही प्राणशक्ति ४०  से  ५० % के मध्य रहने लगी थी जिस कारण स्वास्थ्यपर विपरीत प्रभाव पडने लगा | ख्रिस्ताब्द  २०१० से स्वतन्त्र रूपसे ईश्वर आज्ञा अनुरूप ‘उपासना’नामक संस्थाके माध्यमसे धर्मप्रसार आरंभ करनेपर अपनी  शारीरिक क्षमतासे अधिक सेवा करनेके कारण, पर्याप्त […]

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श्रीगुरुके सर्वज्ञता सम्बन्धित कुछ अन्य अनुभूतियां


 श्रीगुरुने पूरे गांवको ही बना दिया साधक  ख्रिस्ताब्द २००२ में  एक दिवस मराठी साप्ताहिक ‘सनातन प्रभात’में ‘साधक कुटुम्ब’, इस स्तम्भके अन्तर्गत साधकका पूरा कुटुम्ब किस प्रकार साधना कर रहा है, उसकी जानकारी पढ रही  थी । मैं अपने कुटुम्बमें अकेली ही साधनारत थी । मैं उस स्तम्भको देख सोचने लगी, मैं अत्यधिक अभागी हूं, मेरे […]

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श्रीगुरुने ऐसे सिखाया मुझे वाहन चलाना


सगुण गुरुके निर्गुण निराले माध्यम ख्रिस्ताब्द १९९९ में मैं झारखण्डके धनबाद जनपदमें धर्म-प्रसारकी सेवा कर रही थी, उस समय वहांपर नगरके एक छोरसे दूसरे छोर तक जाने लिए सहजतासे हाथ-रिक्शाके अतिरिक्त  दूसरा कोई परिवहनका साधन उपलब्ध नहीं था ।  हाथ रिक्शासे एक स्थानसे दूसरे स्थान जानेमें समयका अधिक व्यय तो होता ही था, धनका व्यय […]

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हमारे श्रीगुरुकी सर्वज्ञतासे सम्बन्धित कुछ और प्रसंग एवं अनुभूतियां


गुरु संस्मरण गुरु ईश्वरके प्रतिनिधि होते हैं अतः ईश्वर समान उनमें सर्वज्ञता रुपी गुण विद्यमान होता है इस सम्बन्धमें शिष्यको गुरु उसकी भाव अनुरूप अनुभूति देते हैं । १. सूक्ष्मसे की गई प्रार्थना श्रीगुरुने सुन ली :  सम्पूर्ण भारतके सनातन संस्थाके प्रमुख प्रसारसेवकोंकी बैठक, परम पूज्य गुरुदेव ख्रिस्र्ताब्द १९९९ से लिया करते थे, जिसमें वे […]

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जब आटा और करेलेने दे दिया धोखा !


सगुण गुरुके निर्गुण निराले माध्यम मेरे अहं निर्मूलनकी साधनाके चरणके अन्तर्गत अपने कुछ प्रसंग आपके साथ साझा कर रही हूं | गुरुतत्त्व जब शिष्यको सिखाने हेतु तत्पर हो जाता है तब किस प्रकार जड-चेतन सब कुछ जिसमें ब्रहम रुपी गुरुतत्त्व व्याप्त होता है वे  साधककी साधनामें सहायता कर, उसे अन्तर्मुख करते हैं, यह प्रतिबिम्बित करना […]

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हमारे श्रीगुरुकी सर्वज्ञता रुपी गुणका बोध करनेवाले कुछ और प्रसंग एवं अनुभूतियां


गुरु संस्मरण १. मुझे समाजको ज्ञान देना अत्यन्त प्रिय है, यह जाननेवाले मेरे सर्वज्ञ सद्गुरु :  प्रथम दर्शनके दिन जब उनके सत्संग एवं मार्गदर्शनके पश्चात् मैं लौटने लगी, तब वे मुझे और एक साधकको ‘लिफ्ट’ तक छोडने आए और उन्होंने चलते-चलते सहजतासे कहा – “आप सत्संग लेना आरम्भ करें ।” श्रीगुरुसे भेंटसे पूर्व भी अध्यात्मके सम्बन्धमें मुझे जो […]

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संतोंकी बताई हुई सूक्ष्मसे बातें कालान्तरमें सत्य सिद्ध हुईं !


सगुण गुरुके निर्गुण निराले माध्यम मेरे श्रीगुरुने भिन्न माध्यमोंसे मुझे मात्र सिखाया ही नहीं अपितु मेरी साधनाकी दिशा योग्य है या नहीं, आगे मेरे लिए आवश्यक है, यह सब भी बताए हैं एवं भिन्न माध्यमोंसे मुझपर अपना स्नेह भी लुटाया है, इसी क्रममें  यह लेख आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूं – जब ख्रिस्ताब्द २००८ के […]

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