घरके वास्तुको कैसे बनाएं आश्रम समान चैतन्यमय एवं उससे होनेवाले लाभ (भाग – ७)


वास्तुशास्त्रकी योग्य जानकारीके अभावमें अनेक बार हमसे कुछ बडी चूकें होती हैं, जिससे घरकी सात्त्विकता न्यून हो जाती है या निर्माण होनेमें बाधा आती है; इसलिए अबसे आपको कुछ आवश्यक वास्तुशास्त्रसे सम्बन्धित तथ्य इस श्रृंखला अन्तर्गत बताएंगे, आप इसे यथासम्भव अपने जीवनमें उतारनेका प्रयास करें ।
वास्तु शास्त्रमें ईशान कोणका महत्त्व : वास्तु शास्त्रके अनुसार सभी दिशाओंमें सबसे महत्त्वपूर्ण दिशा ईशान कोण है । ईशान कोण हमारे घरके उत्तर-पूर्वी भागको कहते हैं, यह उत्तर और पूर्वके योगसे बना कोण है । हम पहले पूर्व और उत्तर दिशाका वास्तु शास्त्र अनुसार क्या महत्त्व है ?, यह संक्षेपमें जान लेते हैं, उसके पश्चात इस विशिष्ट कोणके विषयमें जानेंगे ।
पूर्व दिशा : इस दिशाके प्रतिनिधि देवता सूर्य हैं । सूर्यदेव पूर्वसे ही उदित होते हैं । यह दिवस शुभारम्भकी दिशा है । भवनके मुख्य द्वारको इसी दिशामें बनानेका सुझाव दिया जाता है । इसके पीछे दो तर्क हैं । पहला, दिशाके देवता सूर्यको सम्मानदेना और दूसरा वैज्ञानिक तर्क यह है कि पूर्वमें मुख्य द्वार होनेसे सूर्यका प्रकाश व वायुकी उपलब्धता भवनमें पर्याप्त मात्रामें रहती है । सूर्य दिशासे उदित सूरजकी तेजोमय किरणें रात्रिके समय निर्मित हुए रज-तम प्रधान तत्त्वोंको नष्ट कर घरको ऊर्जावान बनाए रखती हैं ।
उत्तर दिशा : इस दिशाके प्रतिनिधि देव धनके स्वामी ‘कुबेर’ हैं । यह दिशा ध्रूव तारेकी भी है । आकाशमें उत्तर दिशामें स्थित ध्रुव तारा, स्थिरता व सुरक्षाका प्रतीक है । इसी कारणसे इस दिशाको समस्त आर्थिक कार्योंके निमित्त उत्तम माना जाता है । भवनका प्रवेश द्वार या बैठक इसी भागमें बनानेका सुझाव दिया जाता है । भवनके उत्तरी भागको खुला भी रखा जाता है । चूंकि भारत उत्तरी अक्षांशपर स्थित है, इसलिए उत्तरी भाग अधिक प्रकाशमान रहता है । यह भी एक कारण है कि उत्तरी भागको खुला रखनेका सुझाव दिया जाता है, जिससे इस स्थानसे घरमें प्रवेश करनेवाला प्रकाश बाधित न हो ।
अपने घरमें ईशानकोण हम घरके उत्तर-पूर्वी भागको कहते हैं । ज्योतिष शास्त्रमें इस कोणका अपना विशिष्ट महत्त्व है । हमारे घरके इस कोणपर गुरु ग्रह, बृहस्पतिका आधिपत्य है । वास्तुशास्त्र अनुसार वास्तुपुरुषका मस्तक ईशान कोणमें ही स्थापित होता है । 

आइए जानते हैं कुछ और महत्त्वपूर्ण व रोचक तथ्य ईशान कोणके विषयमें :

उत्तर-पूर्व (ईशान कोण), यह दिशा शेष सभी दिशाओंमें सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है । वास्तु अनुसार घरमें इस स्थानको ईशान कोण कहते हैं । भगवान शिवका एक नाम ईशान भी है । यद्यपि भगवान शिवका आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशामें होता है; इसीलिए इस दिशाको ईशान कोण कहा जाता है । इस दिशाके स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं ।

* यह दिशा पूजा घरके लिए उत्तम स्थान होती है; क्योंकि इस कोणमें देवत्वका वास होता है; अतः पूजाघरमें सात्त्विकताका निर्माण होनेमें भी अल्प समय लगता है । यदि ईशान कोणमें पूजाघर है तो उसके ऊपर या नीचे भी शौचालय नहीं बनाना चाहिए ।

* पूर्व दिशाके परिणाम बच्चोंके मनपर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं; अतः बच्चोंका शयन कक्ष व अध्ययन कक्ष ईशान कोणमें होना शुभ माना जाता है; इससे बच्चोंका पढाईमें मन लगता है और स्मरण किए गए तथ्य वे शीघ्र नहीं भूलते हैं; किन्तु उस कक्षमें पूजाघर न हो, यह ध्यान रखें अन्यथा शक्ति तत्त्वके बढ जानेसे बच्चोंका मन कई बार पढाईमें नहीं लगेगा । इसलिए पूजाघर और बच्चोंका कक्ष एक ही कक्षमें न रखें !

* जिन भवनोंमें पूर्व और उत्तरमें खाली स्थान छोडा जाता है, उनके निवासी समृद्ध और नीरोगी रहते हैं ।

* ईशान कोणमें जलघर अथवा जलकी टंकी या कुंआ अथवा जलका नलका लगवा लेनेसे भी आपके घरमें आप तत्त्वका सन्तुलन रहनेसे सुख व समृद्धिका वास होता है । ईशान कोणमें यदि कोई जल स्रोत बनाया जाए तो प्रातःकालके सूर्यकी पैरा-बैंगनी किरणें उसे स्वच्छ कर देती हैं ।

* वास्तु शास्त्रके अनुसार यदि घरके ईशान कोणमें देवत्वका वास हो तो घरके मुखिया एवं परिवारकी सोचकी दिशा योग्य रहती है ।

* इस स्थानपर कूडा-करकट नहीं रखना चाहिए, इस कोणमें शौचालय, भण्डार कक्ष (स्टोर रूम) इत्यादि नहीं बनाना चाहिए, साथ ही लोहेकी कोई भारी सामग्री रखना भी वर्जित है । ईशान कोणमें किसी भी प्रकारका झाडू नहीं रखना चाहिए । इससे धन-सम्पत्तिका नाश और दुर्भाग्यका निर्माण होता है । शौचालय नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोणमें या पश्चिम दिशाके मध्यमें होना उत्तम होता है ।

* ईशान कोणमें विवाहित जोडोंको नहीं सोना चाहिए अन्यथा उनमें मानसिक द्वन्द्व होता है और सम्बन्ध टूटनेकी स्थिति आती है । घरमें क्लेश बना रहता है ।

* ईशान कोणमें गड्ढेका होना भी नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है । साथ ही इस कोणमें रसोईघरका होना भी दरिद्रताको आमन्त्रण देता है ।

 

वास्तु शास्त्रके अनुसार पूजाघरका निर्माण : ईशान कोणमें देवस्थानका निर्माण करना शुभ माना जाता है । ऐसे वास्तुके अनुसार बने घरमें हमें सुख, समृद्धि तो रहती ही है, वह साधना हेतु भी पोषक होता है ।

* पूजाघरके पूर्व या पश्चिम दिशामें देवताओंकी मूर्तियां होनी चाहिए ।

* पूजाघरमें रखी मूर्तियोंका मुख उत्तर या दक्षिण दिशामें नहीं होना चाहिए । पूजाघरका वातायन (खिडकी) व द्वार पश्चिम दिशामें न होकर उत्तर या पूर्वदिशामें होने चाहिए, जिससे सूर्यकी किरणोंसे पूजाघर प्रकाशित होता रहे !

* इस कोणपर मृत पितरोंके चित्र न लगाएं और न ही पूजाघरमें रखें ! ध्यान रहे, यदि लगे हुए छायाचित्रमेंसे किसी पूर्वजको गति न मिली हो तो ऐसे पूर्वजोंके छायाचित्रसे वास्तु दूषित होनेकी आशंका होती है ।

 

ईशान कोणके दोष निवारण कैसे करें ?

यदि ईशान कोणमें जलस्थान न हो या किसी भी प्रकारका दोष हो, तो इसी कोणमें वास्तु पुरुषके नामसे उस स्थानको स्वच्छकर, पीतलके एक पात्रमें (लोटेमें) जल भरकर उसमें हलदीचूर्ण डालकर, कुछ दाने केसर व तुलसीदल डालें, पञ्चधातु या पञ्चरत्न डालकर रखें और शुभ फलकी प्राप्ति हेतु इस जलको नित्य प्रतिदिन परिवर्तित करते रहें ! साथ ही वहां उदबत्ती (धूपबत्ती) भी नित्य दोनों समय जलाएं !

यहां तुलसीका एक पौधा रखकर उसमें नित्य जल देना, देसी घीका दीपक जलाकर आरती करना, शिव परिवार व विष्णु आराधना करनेसे इस स्थानको दोषमुक्तकर शीघ्र ही जाग्रत कर देता है और परिवारको शुभ फल प्राप्त होता है ।

यदि यहां शौचालय, भण्डारगृह आदि बना है तो अपने गुरुकी सेवा करना, किसी गुरुकुलके बटुक अर्थात विद्यार्थीयोंको अध्ययन सामग्री दान करना, साधु-सन्तोंको अन्न-वस्त्र देना, माता-पिताकी सेवा करना, बृहस्पति या दत्तात्रेय देवताकी पूजा, आराधना एवं वास्तुके मध्य स्थानपर बैठकर ‘श्री गुरुदेव दत्त’का पन्द्रह मिनिट प्रातःकाल जप करें, साथ ही दान आदि तथा प्राण प्रतिष्ठित बृहस्पति यन्त्रकी नियमित पूजा आराधना भी लाभ देती है ।



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