गोरक्षाके लिए १५ वर्षोंसे छोड रखा था अन्न, महात्मा सुभाष मुनिने देहत्याग किया !


दिसम्बर ९, २०१८

‘हरियाणा राज्य गौशाला संघ’के संरक्षक और राष्ट्रीय गौरक्षा सत्याग्रह समितिके संयोजक महात्मा सुभाष मुनिने लगभग ७० वर्षकी आयुमें रविवार, ९ दिसम्बरको देहत्याग किया । उनका अंतिम संस्कार ऋषि नगर स्थित श्मशान घाटमें किया गया । गौशाला संघके प्रदेशाध्यक्ष शमशेर आर्यने महात्मा सुभाष मुनिके निधनपर शोक व्यक्त करते हुए बताया कि महात्मा सुभाष मुनिने आजीवन ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए देशभरमें गोहत्यापर प्रतिबन्ध लगाने तथा गोरक्षाके लिए आन्दोलनरत रहे । १५ वर्षोंसे उन्‍होंने अन्‍न छोडा हुआ था । मूल रूपसे पंजाबमें जन्मे महात्माजीने हरियाणाके हिसारको अपनी कर्मभूमि बनाया और गत एक दशकसे गांव टोकसके एक मन्दिरमें रह रहे थे । उन्होंने राष्ट्रीय स्तरपर गोरक्षा आन्दोलनोंमें बढ-चढकर भाग लिया तथा देश भरकी पैदल यात्राएं भी की ।

ख्रिस्त्राब्द २००३ में केरल प्रान्तमें खुलेमें सडकोंपर गौ हत्याका दृश्‍य देखकर उनकी रूह कांप गई तथा सम्पूर्ण देशमें पूर्ण रूपसे गौ हत्या बंद न होनेतक अन्न त्यागका कठिन संकल्प लिया और प्राण छूटनेतक उन्होंने अपने संकल्पके अनुसार अन्न ग्रहण नहीं किया । केवल फल व सब्जियोंपर अपना जीवन व्यतीत किया । १५ वर्षोंमें जंतर-मंतर रोड देहली सहित लगभग ८० स्थानोंपर दिए धरने पूर्ण रूपसे गोरक्षाको सर्मिपत महात्मा सुभाष मुनिने हरियाणा राज्य गौशाला संघके संरक्षक पदको सुशोभित करनेके साथ-साथ राष्ट्रीय गौरक्षा सत्याग्रह समितिका गठन भी किया ।

राष्ट्रीय राजधानी देहली सहित १०० जनपद मुख्यालयोंपर धरना देनेका संकल्प लिया तथा लगभग ८० स्थानोंपर अबतक प्रदर्शन और सत्याग्रहकेद्वारा शासनको ज्ञापन देकर अपनी मांगोंको मनवानेके लिए प्रयास करते रहे । ‘हरियाणा राज्य गौशाला संघ’द्वारा हिसारमें १५१ दिवस तक चले धरना प्रदर्शनका नेतृत्व किया तथा सन्त गोपाल दासके गोचर भूमि बचाओ आन्दोलनमें भी मुख्य भूमिका निभाई । इसके अतिरिक्त राम जन्मभूमि आन्दोलन तथा राम मन्दिर निर्माण आन्दोलनमें भी बढ-चढकर भाग लिया ।

 

“हिन्दुओंको यह ध्यान रखना चाहिए कि आपके पास कार्य करने वाले अधिक सन्त अथवा मुनि नहीं हैं । उन्हें भी आप खोने देंगें तो समाजके लिए कौन कार्यरत होगा ? अतः गौरक्षा, गंगा संरक्षण व राम मन्दिर हेतु शासक वर्गपर बल देकर कहें और मुखर होकर हिन्दू विरोधी कृत्योंका विरोध करें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : जागरण



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