दिसम्बर १५, २०१८
देशके अग्रणी शिक्षण संस्थान आईआईटी, मद्रासकी रसोईमें मांसाहारी और शाकाहारी विद्यार्थियोंके लिए प्रवेश, वॉशबेसिन और बर्तन अलग करनेका प्रकरण उठनेके पश्चात इस निर्णयको वापस ले लिया । रसोइयेने कथित रूपसे इसके लिए फलक (पोस्टर) लगाए थे, जिन्हें शुक्रवार देर शाम हटा दिया गया ! संस्थानने रसोइयेके विरुद्ध कार्यवाही करनेका भी वचन दिया है ।
इससे पूर्व परिसरमें सक्रिय ‘आम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्कल’ने ‘हिमालय मेस’में लगे इन फलकके (पोस्टरके) चित्र साझा किए थे । सर्कलने इस पगको जातिवादका एक प्रकार बताया ! उनकी ओरसे कहा गया, ‘तथाकथित ऊंची जातिके घरोंमें दो रास्ते होते हैं, एक ऊंची जाति और दूसरे अछूत लोगोंके लिए । आईआईटी मद्रासकी रसोईमें ऐसी ही व्यवस्था बना दी गई है । भोजनशालाको (मेसको) शुद्ध शाकाहारी बनाए जानेकी मांग अब छुआछूतमें परिवर्तित हो गई है । आईआईटी-मद्रास विश्वस्तरका संस्थान बननेका प्रयास कर रहा है, परन्तु यहांकी संस्कृति कई बातोंमें पिछडा है ।’
उधर, संस्थानके एक अधिकारीका कहना है कि विद्यार्थियोंको जो वे खाना चाहें, उसकी स्वतन्त्रता है और प्रबन्धनकी इसमें कोई भूमिका नहीं है । उन्होंने कहा कि ये छात्रोंके ऊपर है । यह कहनेका कोई आधार नहीं है कि आईआईटी-मद्रासमें जातिके आधारपर पक्षपात किया जाता है ।
विवाद बढनेके पश्चात शुक्रवार देर शाम निरीक्षण समितिको इस बारेमें बताए जानेपर छात्रावाससे ये फलक हटा दिए गए और विद्यार्थियोंको स्पष्टीकरण देते हुए क्षमा मांगी गई ।
“जिस प्रकार मैकाले शिक्षण पद्धतिसे बुद्धि पतन हुआ है, उससे बुद्धिवादियोंके शैक्षणिक संस्थानमें बुद्धिहीनताका ऐसा दृश्य अचम्भित नहीं करता है । मांसाहार और शाकाहारको भिन्न करनेको जातिवाद और पिछडेपनसे कैसे जोडा जा सकता है ! शाकाहारी व्यक्ति मांसाहारसे घृणा करता है, इसमें संशय नहीं, ऐसेमें एक स्थानपर रखनेका क्या औचित्य है ? और शैक्षणिक संस्थानोंमें विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं अथवा जिह्वाकी तृप्ति हेतु ? विद्यार्थियोंको शिक्षा प्राप्तिके समय ब्रह्मचर्य व सात्विक जीवन हेतु शाकाहारकी ही आवश्यकता होती है, परन्तु आजके वासनान्ध और बुद्धिवादी इसका महत्व कैसे जान सकेंगें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : नभाटा
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