मांसाहार क्यों न करें ? (भाग – ९)


जर्मनीके प्रोफेसर एग्नरबर्गका निष्कर्ष है कि अण्डा ५१.८३% कफ उत्पन्न करता है । वह शरीरके पोषक तत्त्वोंको असन्तुलित कर देता है ।
अमेरिकाके डॉ. इ. बी.एमारी तथा इंग्लैंडके डॉ. इन्हाने अपनी विश्व विख्यात पुस्तकों ‘पोषणका नवीनतम ज्ञान’ और ‘रोगियोंकी प्रकृति’में स्पष्ट रूपसे माना है कि अण्डा मनुष्यके लिए विष है ।
आपको बता दें कि भारतके तटीय क्षेत्रोंके अनेक लोग मछली भक्षण करते थे; किन्तु वे अण्डेको अपने घरतक नहीं घुसने देते थे । आजसे चार-पांच दशक पूर्वतक इसे एक निकृष्ट भोज्य पदार्थ समझा जाता था ! यह तो इस निधर्मी शासन तन्त्रके अण्डाके विषयमें प्रचार-प्रसारका परिणाम है कि अण्डा आज शाकाहार समझकर खाया भी जाने लगा है ! हमारी बुद्धिभ्रष्टता इस सीमातक पहुंच चुकी है ।
इंग्लैंडके डॉ. आर.जे.विलियमका निष्कर्ष है कि यह सम्भव है कि अण्डा खानेवाले आरम्भमें अधिक चुस्ती अनुभव करें; किन्तु कुछ समय पश्चात उन्हें हृदय रोग, ‘एक्जिमा’ और लकवा जैसे भयानक रोग हो जाते हैं ।
  प्रयोगोंसे ज्ञात हुआ है कि अण्डे यदि अधिक तापमानपर १२ घण्टेसे अधिक समयतक रहें तो उनके भीतर सडनेकी प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है, ऐसी स्थितिमें भारत जैसे देशमें, जहां तापमान सदैव इससे अधिक रहता है और अण्डोंको मुर्गीपालन क्षेत्रमें (पॉल्ट्री फार्ममें) तैयार होकर विक्रय (बिक्री) होनेतक जो लगभग २४ घण्टोंका समय लग जाता है, तबतक उनमें सडन प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है; क्योंकि उसके उत्पन्न होनेसे विक्रयतक (बिकनेतक) वे समान प्रशीतनमें (रेफ्रिजरेशनमें) रहें, यह सम्भव नहीं है । जब अण्डे सडने लगते हैं तो पहले उसका जलीय भाग कवचमेंसे (शैल) वाष्प (भाप) बनकर उडने लगता है, उसके पश्चात रोगाणुओंका आक्रमण आरम्भ होता है, जो कवचमें अपनी पहुंच बनाकर उसे पूरी तरह सडा देते हैं । सूक्ष्म स्तरपर सडे हुए अण्डे पहचाने न जानेके कारण उपयोगमें ले लिए जाते हैं, जिससे उदर विकार, खाद्य-विषायन (फूूडपॉयजनिंग) आदि रोग हो जाते हैं ।  
अब आपको समझमें आ रहा है, ‘सण्डे हो या मण्डे रोज खाएं अण्डे’ जैसे विज्ञापन कितने भ्रामक होते हैं !
वस्तुत: इस समाजको रोगी और तमोगुणी बनाने हेतु ही यह सब एक सोचा समझा षड्यंत्र अन्तर्गत किया जा रहा है !



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