गोभक्तोंकी हिंसाके विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनके मध्य प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीने रोष व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि हिंसा अस्वीकार्य है और सह्य नहीं की जाएगी । साबरमती आश्रमके पास गौशाला मैदानसे ही उन्होंने कठोर सन्देश दिया कि किसीको भी विधान (कानून) हाथमें लेनेका अधिकार नहीं है । एक वर्षमें यह दूसरा अवसर है जब उन्होंने कथित हिंसामें जुटे गोभक्तोंपर वक्तव्य दिया है ।
पिछले कुछ महीनोंमें देशके कई भागोंसे गौमांसको लेकर हिंसाकी घटनाएं सामने आई हैं । एक दिन पहले देशके कई भागोंमें इस विषयपर कुछ संगठन प्रदर्शन करते भी दिखे हैं । विपक्षी दलोंकी ओरसे इस प्रकरणको चर्चाका विषय भी बनाया जाता रहा है । ऐसेमें प्रधानमन्त्री मोदीने गांधीकी भूमिको चुना । साबरमती आश्रमके शताब्दी समारोहमें बोलते हुए उन्होंने गोभक्तोंपर आक्रमण किया । मोदीने कहा- ‘गायके नामपर किसीकी हत्या करना अस्वीकार्य है, यह अहिंसाकी भूमि है, गांधी और विनोबाने हमें सिखाया है कि असली गोभक्ति क्या होती है ?’ देशके वर्तमान वातावरणको लेकर उन्होंने कहा ‘जिस देशमें चींटी, कुत्ते व मछलीको भोजन देनेके संस्कार हों, वहां गायके नामपर मनुष्यको मार डालना कहांतक उचित है ?
विनोबाका स्मरण करते हुए कहा कि जब वे उनसे मिले तो विनोबाजीने कहा था कि गायकी रक्षाके लिए मर जाओ ।
प्रधानमन्त्रीके इस वक्तव्यसे उनके मातृ संगठनके ही अधिकांश लोग सहमत नहीं हैं और अपना विरोध भी जता चुके हैं | यह सत्य है कि किसी भी व्यक्तिको विधानका उल्लंघन नहीं करना चाहिए; परन्तु वे यह भी विचार करें कि ऐसी स्थिति आती ही क्यों है ? क्या केवल गोरक्षक ही दोषी है, ‘कसाई’ दोषी क्यों नहीं है ? प्रधानमन्त्री कभी गोहत्यारोंपर भी सार्वजनिक वक्तव्य देंगे ? उन्होंने कहा कि विनोबाजीने कहा था कि गायकी रक्षाके लिए मर जाओ । इस वक्तव्यका अर्थ तो यह हुआ कि गाय इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उसकी रक्षाके लिए प्राण भी दिए जा सकते हैं और महत्त्वपूर्ण तो ‘आत्मरक्षा’ भी है; अतः गोरक्षा करते प्राणसंकटमें आएं तो क्या करना चाहिए ? यह भी प्रधानमन्त्रीद्वारा बताया जाना चाहिए | – वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : m.jagran.com
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