दिसम्बर १३, २०१८
उच्चतम न्यायालयने वर्ष २०१२ के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या प्रकरणमें चार दोषियोंको तुरन्त मृत्युदण्ड देनेके निर्देश देनेकी मांग वाली याचिका बृहस्पतिवार, १३ दिसम्बरको अस्वीकृत कर दी !
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ताकी पीठने कहा, ‘‘आप किसप्रकरकी याचना कर रहे हैं ? आप न्यायालयका मजाक बना रहे हैं ?’’ उल्लेखनीय है कि २३ वर्षीय पैरामेडिक छात्रासे वर्ष २०१२ में १६-१७ दिसम्बरकी रातको छह लोगोंने दक्षिण दिल्लीमें एक चलती बसमें नृशंसतासे सामूहिक दुष्कर्म किया और उसे सडकपर फेंक दिया । उसकी २९ दिसम्बर २०१२ को सिंगापुरके माउंट एलिजाबेथ चिकित्सालयमें मृत्यु हो गई थी ।
उच्चतम न्यायालयने नौ जुलाईको तीन दोषियों मुकेश, पवन गुप्ता और विनय शर्माकी शीर्ष न्यायालयके आदेशकी समीक्षा वाली याचिकाएं अस्वीकृत कर दी थी । शीर्ष न्यायालयने इस प्रकरणमें दिल्ली उच्च न्यायालय और निचली न्यायालयके निर्णयको बनाए रखा था ।
“इतने जघन्य और नृशंस दुष्कर्म और हत्याके प्रकरणमें जब पूरा देश राष्ट्रपति भवनके सामने विनती लेकर खडा था, उसके दोषियोंको छः वर्ष पश्चात भी मृत्युदण्ड नहीं दिया गया है ! अब माननीय न्यायाधीश यह बताए कि उपहास किसका बनाया गया है ? न्यायालयका अथवा देशका ? छः वर्ष पश्चात दोषियोंको मृत्युदण्ड न मिलना, एक १७ वर्षके धर्मान्ध मुख्य अपराधीको छोड देना, ये न्यायालय अथवा सांसदोंके लिए हो अथवा नहीं, परन्तु देशके लिए अवश्य लज्जाजनक है ! और क्या इसी भांति नारी सुरक्षा करेंगें ? दोषियोंकोतुरन्त मृत्युदण्डका विधान क्यों नहीं बनाया जा सकता ?”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : अमर उजाला
Leave a Reply