साधनाका संस्कार बाल्यकालमें नहीं, अपितु गर्भकालमें डालना चाहिए तभी गर्भस्थ शिशुमें तेजस्विता निर्माण हो सकती है, किन्तु विडम्बना तो देखें, आजके अधिकांश माता-पिता इस दिशामें कोई प्रयत्न नहीं करते हैं ! इसलिए ऐसी सन्तानोंसे उन्हें दुःख मिलता है या वे अपने सन्तानोंके दुःखको देखकर दुखी होते हैं ! वैसे ऐसे निधर्मी पालक इसीके पात्र भी होते हैं !
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