मनकी एकाग्रता साध्य करने हेतु करें साधना
चाहे कोई विद्यार्थी हो या गृहस्थ या सन्यासी, सभीके लिए एकाग्र मनकी आवश्यकता होती है और मनको एकाग्र करने हेतु आधुनिक विज्ञानने आज तक कोई औषधि नहीं बनाई है । मन सूक्ष्म है, इसलिए उसपर सूक्ष्म प्रक्रिया करके ही उसे एकाग्र किया जा सकता है और यह प्रक्रिया ही ‘साधना’ कहलाती है; इसके अनेक प्रकार हैं, जिसे अध्यात्ममें योगमार्ग कहते हैं । सभी व्यक्तियोंके लिए साधना आवश्यक है, इसलिए हमारे मनीषियोंने सभी आश्रमोंके लिए यथा – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रमके लोगोंके लिए साधनाकी अनिवार्यताका प्रतिपादन किया था, किन्तु मैकालेकी आसुरी शिक्षण पद्धतिने ब्रह्मचर्य कालसे ही साधनाके संस्कारको विलग कर दिया; परिणामस्वरुप जब ऐसे लोग गृहस्थ बने तो उनके जीवनमें भी साधना विलुप्त हो गई । आज व्यस्क व्यक्ति तो अशान्त मनके कारण व्यथित रहता ही है, यहां तक कि दस वर्षका बच्चा भी अपनी पढाईमें मन एकाग्र नहीं कर पाता है । आधुनिक विज्ञान कहता है कि आज सामान्य मनुष्यके ७५ % रोग अशान्त मनके कारण होता है । इस प्रकार शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्वास्थ्य हेतु मनका शान्त होना अति आवश्यक होता है । मनको एकाग्र करना वही सिखा सकता है, जो स्वयं इस कलामें प्रवीण हो; यह प्रायोगिक शास्त्र है, जिसका मन जितने अधिक समय तक एकाग्र रह सकता है, वह उतने उच्च कोटिका सन्त माना जाता है । अर्थात लौकिक और पारलौकिक दोनों ही कल्याण हेतु मनका एकाग्र होना परम आवश्यक होता है और यह मात्र साधना करनेसे ही साध्य हो सकता है ।
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