साधना क्यों करें ? (भाग – ८)


प्रारब्ध अर्थात पूर्व जन्मके कुल कर्मफलका वह भाग, जिसे हम इस जन्ममें भोगने हेतु लेकर आते हैं । हमारे श्रीगुरुके प्रारब्धके कष्टोंकी तीव्रताके अनुसार उसे तीन श्रेणियोंमें विभाजित किया जा सकता है –
साधारण, मध्यम एवं तीव्र ।

अब प्रारब्ध और साधनाका समीकरण समझ लेते हैं :
१. साधारण प्रारब्ध – अर्थात सब कुछ अच्छा चल रहा है और जीवनमें कभी-कभी थोडा सा कष्ट भोगना पडे । इस श्रेणीके प्रारब्ध अनुसार तीव्र साधना करनी चाहिए । साधारण प्रारब्धमें साधना करना सरल होता है, इससे पूर्व जन्मोंके कुल कर्मफल अर्थात संचित नष्ट हो सकते है, हम अध्यात्ममें शीघ्र प्रगति कर सकते हैं; क्योंकि प्रारब्ध अधिक तीव्र नहीं होनेसे साधना भी अच्छेसे एवं बिना अधिक व्यवधानके हो पाती है । (क्रमश:)



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