‘अधर्म एवं मूलं सर्व रोगाणां‘ अर्थात हमारे रोग और शोकका मूल कारण हमारेद्वारा इस जन्म या पिछले किसी जन्ममें किया गया अधर्म होता है और इसपर मात पानेका मात्र एक ही उपाय होता है और वह है, साधना करना । साधनाके माध्यमसे जो तीव्र प्रारब्ध होते हैं अर्थात तीव्र स्तरके दुःख होते हैं, उसे सहन करनेकी शक्ति मिलती है और जब हम पूरी लगनसे अनेक वर्ष निष्काम भावसे साधना करते हैं तो हमारी साधनाके तपोबलसे संचित अर्थात जो सुख-दुःख हमें अगले जन्मोंमें भोगने हैं, वे नष्ट होने लगते हैं और इसप्रकार साधनाके प्रतापसे हम कर्म-बन्धनोंसे मुक्त होकर मोक्षकी ओर अग्रसर होते हैं । इस प्रकार हमारे दु:खोंसे सदैवके लिए मुक्ति पानेका एक ही पर्याय होता है और वह है, श्रद्धा एवं लगनसे साधना करना !
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