कालानुसार हम विज्ञानके संशोधनको मान्य करते हैं, वैज्ञानिकोंसे जाकर उनके नूतन संशोधन हेतु अनर्गल बातें नहीं करते हैं और न ही उनसे शास्त्रार्थ करते हैं ! किन्तु मैंने देखा है कि जब ऐसी ही कुछ नूतन बातें अध्यात्ममें कालानुसार संतोंद्वारा बताई जाती हैं तो अनेक बुद्धिजीवी या आध्यात्मिक प्रवृत्तिके लोगोंके गलेके नीचे नहीं उतरती हैं ! जैसे हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित स्तरानुसार साधना, जो सूक्ष्म इन्द्रियोंके माध्यमसे बताई जाती हैं, उसके विषयमें अनेक बुद्धिजीवी(तथाकथित) लोगोंके मनमें बहुत संशय होते हैं, अब योग्य साधना नहीं करेंगे तो सूक्ष्म समझमें कैसे आएगा, बुद्धिसे आध्यात्मिक तथ्योंको समझना कभी सम्भव नहीं ! वैसे ही, अनेक लोगोंको पितृदोष निवारणार्थ ‘श्री गुरुदेव दत्त’ मन्त्रजप भी स्वीकार्य नहीं होता है ! जैसे कल ही एक महोदयने लिखा है कि यह कौनसे ग्रन्थमें लिखा है कि श्री गुरुदेव दत्त जप करनेसे पितृदोष न्यून होगा ? सनातन धर्ममें आज भी अनेक उच्च कोटिके सन्त हैं जो अध्यात्ममें नित्य नूतन शोधकर समाजको साधना एवं अध्यात्मके सरल मार्ग बताते हैं, जो कालानुसार उनके लिए सुग्राह्य हो ! वस्तुत: सन्त आध्यात्मिक शोधकर्ता होते हैं; किन्तु हिन्दुओंकी अज्ञानता और अहंकारके कारण ही वे वैज्ञानिकोंसे उनके नूतन आविष्कारोंको लेकर वाद-विवाद तो नहीं करते हैं; किन्तु सूक्ष्मकी अल्प जानकारी होनेपर भी संतोंके शोधपर संदेह अवश्य व्यक्त करते हैं ! संतोंमें संकल्पका सामर्थ्य होता है, हमारे सभी अनादिकालीन मन्त्र, आज भी प्राचीन संतोंके संकल्पके कारण ही कार्यसिद्धि हेतु सक्षम हैं ! मैंने तो लाखों लोगोंके जीवनमें ऐसे मन्त्रोंसे परिवर्तन होते देखा है और आध्यात्मिक स्तरसे सम्बन्धित भी अनेक स्थूल और सूक्ष्म अनुभव हैं मेरे पास ! मात्र देव योग अनुसार साधनाके आरम्भिक कालसे मैंने अपने श्रीगुरुके सिद्धान्तोंपर संदेह न कर उसे अपनी साधनाके माध्यमसे समझनेका प्रयास किया और उसके मुझे उत्कृष्ट परिणाम मिले हैं !
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