रामनाथी आश्रमके अन्नपूर्ण कक्षमें (रसोईघरमें) सेवा करनेवाले साधकोंकी दैनिक सनातन प्रभात, ग्रन्थ विभाग, कला विभाग, लेखा विभाग इत्यादि विभागोंमें सेवा करनेवाले साधकोंकी अपेक्षा शीघ्र प्रगति होती है । इसके कारण निम्नलिखित हैं :-
१. अन्य विभागोंके साधकोंका सम्बन्ध केवल संगणकसे होता है । उन्हें अन्य लोगोंसे बोलनेका, उनसे निकटता साधनेका समय नहीं मिलता । इसके विपरीत वे रसोईघरमें सेवा करते-करते अन्य लोगोंसे बोलते हैं, इससे उनमें निकटता, प्रेमभाव इत्यादिमें वृद्धि होनेमें सहायता मिलती है ।
२. स्वयंके तथा अन्य व्यक्तियोंके स्वभावदोष समझमें आते हैं; इसलिए उनपर विजय प्राप्त करना सम्भव होता है ।
३. अन्य विभागमें सेवारत साधक सेवा करते हुए, नामजप नहीं कर सकते एवं भावकी स्थितिमें रहनेका प्रयत्न भी नहीं कर सकते । इसके विपरीत रसोईघरमें सेवा करनेवाले साधकोंके लिए यह सहज सम्भव होता है ।
इस कारण रामनाथी आश्रममें स्वभावदोष निर्मूलन हेतु आए साधकोंको रसोईघरकी सेवा करनेको कहा जाता है ! – परात्पर गुरु डॉ. जयन्त आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था
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