सितम्बर ११, २०१८
चीनकी राजधानी बीजिंग स्थित सबसे बडे गिरिजाघर ‘जियोन’को बलात बन्द करा दिया गया है । गिरिजाघरपर बिना अनुमतिपत्र (लाइसेंस) परिचालनका आरोप था । चीनके विधानके अनुसार प्रत्येक धार्मिक स्थानको प्रशासनसे मान्यता लेनी होती है । गत कुछ समयमें कम्युनिस्ट शासनने सभी धर्मो विशेषतया ईसाई समुदायके विरुद्ध कार्यवाही तेज कर दी है । बीजिंगके साथ कई प्रान्तोंमें ईसाई धर्मके पवित्र चिह्न क्रॉस और धार्मिक पुस्तक ‘बाइबिल’को नष्ट कर दिया गया ।
देशमें धर्मोंकी निगरानी करने वाली संस्थाके अनुसार गिरिजाघर बन्द करानेके साथ ईसाइयोंसे अपना धर्म छोडनेके लिए लिखितपत्रोंपर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं ।
शासन यह कार्यवाही विभिन्न धर्मोंके लोों में आधिकारिक रूपसे नास्तिक ‘कम्युनिस्ट पार्टी’के प्रति वफादारी बढाने और भविष्यमें दलके समक्ष खडी होने वाली किसी भी चुनौतीको समाप्त करनेके लिए कर रही है ।अमेरिकी स्थित ‘चीन एड समूह’के बॉब फूने कहा, ‘चीनमें धार्मिक मान्यताओंकी स्वतन्त्रताके उल्लंघनपर अन्तर्राष्ट्रीय समुदायको सचेत रहना चाहिए ।’ राष्ट्रपति शी चिनफिंगके शासनमें लोगोंकी धार्मिक स्वतन्त्रता नाटकीय रूपसे सिकुडती जा रही है ।
वर्तमानमें चीनमें ३.८ कोटि प्रोटेस्टेंट ईसाई हैं । माना जा रहा है कि आने वाले दशकोंमें चीनमें विश्वकी सबसे बडी ईसाई जनसंख्या होगी । इन्हीं सम्भावनाओंके मध्य कुछ समयसे ईसाई समुदायको बडे सुनियोजित ढंगसे दबानेका प्रयास किया जा रहा है ।
ईसाइयोंके अतिरिक्त उइगर मुसलमानोंपर भी शासनने अपना शिकंजा कसा हुआ है । देशके उत्तर-पश्चिमी प्रान्तमें लगभग १० लाख उइगर मुसलमानोंको मनमाने ढंगसे बन्दी बनाया गया है ।
“क्या हिन्दुस्तानकी सरकारोंमें साहस नहीं कि जो धर्मद्रोही ईसाई यहां धर्मान्तरण कर रहे हैं, उनपर प्रतिबन्ध लगा सकें !” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : दैनिक जागरण
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