बहुत छोटे रंग-बिरंगे सजावटकी अपेक्षा दीपोंकी लडीसे घरको सजाएं, दीप सात्त्विक होता है और बिजलीके बल्बमें देवत्वको आकृष्ट करनेकी रत्ती भर भी क्षमता नहीं होती, उसके विपरीत वह तामसिक होनेके कारण उससे काली शक्ति प्रक्षेपित होती है जो सम्पूर्ण वास्तुको अपवित्रकर लक्ष्मीके प्रवेशको वर्जित करती है । दीपकी ज्योति हमारी वृत्तिको अन्तर्मुख करती है एवं बिजलीके छोटे रंग-बिरंगे बल्ब हमारी वृत्तिको बहिर्मुख करती है । यदि आपकी सूक्ष्म इन्द्रियां जागृत हों तो आप इस सम्बन्धमें एक छोटाका प्रयोग करें । दीपावलीके दिवस किसी भवनमें दीपोंकी सजावटको देखें और पांच मिनिट मनको एकाग्र करनेका प्रयास करें और पुनः किसी ऐसे भवनको देखें जिसकी सजावट रंग-बिरंगी छोटे बल्बसे की गई और पांच मिनिट मनको एकाग्र करनेका प्रयास करें एवं दोनों ही दृश्यको देखनेके पश्चात आपके शरीर और मनमें क्या परिवर्तन हुआ इसका निरिक्षण करें, उत्तर आपको स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा । आप यदि प्रयोग अन्तर्जाल (इन्टरनेट) दो छायाचित्र निकाल कर भी कर सकते हैं । आज सर्व सामान्य हिन्दू साधना नहीं करता है परिणामस्वरूप उसकी वृत्ति बहिर्मुख होती है और उसे ऊपरकी तामझाम, आडम्बर, दिखावा इत्यादि बहुत आकृष्ट करता है । एक सरल सा सिद्धान्त ध्यान रखें पारम्परिक वैदिक संस्कृति सत्त्वगुणी है एवं विदेशी संस्कृति तमोगुणी है; अतः व्रत-त्योहार सात्त्विक रीतिसे मानानेका प्रयास कर देवताकी कृपा सम्पादित करें । – तनुजा ठाकुर (११.१०.२०१७)
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