हमारा शरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है एवं इस शरीरको स्वस्थ बनाए रखनेकी शक्ति हमारे शरीरमें ही ईश्वरने निहितकी है । शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी भाषा है, जिसे सूक्ष्म ज्ञानके अभावमें हम कालान्तरमें भूल चुके हैं एवं इन्हें शास्त्रानुसार करनेसे हमें शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों स्तरपर लाभ प्राप्त होते हैं । ऋषि–मुनियोंने सहस्रों वर्षों पूर्व इस सूक्ष्म विधाको अपनी प्रज्ञाशक्तिके बलपर ढूंढ निकाला था एवं वे उसके नियमित उपयोगसे स्वस्थ रहते थे तथा हिन्दू धर्मके अनेक आचारधर्मके पालनमें इसे समाविष्ट भी किया गया था, जैसे नमस्कार, हाथसे भोजन ग्रहण करना, पैर मोडकर भिन्न प्रकारके आसन बनाकर अपनी दिनचर्याके मध्य बैठना, ये सब विशिष्ट मुद्राओंसे प्रभावित रहे हैं । यथार्थमें मुद्राएं शरीरमें चैतन्यको अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियां हैं । मुद्राओंका प्रयोग हमारे देवी-देवताओंकी मूर्तियोंमें, देवालयोंकी कलाकृतियोंमें तथा भारतीय नृत्य शैलीमें हुआ है । यहांतक कि हाथसे भोजन ग्रहण करते समय उस विशेष मुद्रासे हमें लाभ मिलता है; अतः हम हाथसे भोजन करते हैं ।
पञ्च तत्त्वोंसे बने इस शरीरके यदि इन तत्त्वोंको सन्तुलित रखा जाए तो आरोग्यता प्राप्त होती है । मात्र कुछ शतकोंसे धर्म और अध्यात्मसे दूर जानेके कारण ऐसे सभी सूक्ष्म प्राकृतिक एवं सरलतासे उपलब्ध चिकित्सा पद्धतियोंसे हम दूर हो गए हैं; किन्तु हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने ऐसी सभी चिकित्सा पद्धतियोंको कहीं न कहीं प्रचलित कर, उसे जीवित रखा है; अतः अब हम ऐसी सभी चिकित्सा पद्धतियोंको उनके विशेषज्ञोंसे सीखकर उसे अपनानेका पुनः प्रयास करेंगे । इस हेतु इन्हें सीखकर, अभ्यास करनेकी मात्र आवश्यकता है ।
इ. हस्त मुद्राओंकी संख्या
मुद्राओंकी निश्चित संख्याको बताना थोडा कठिन है एवं शास्त्रोंमें इसका भिन्न स्थानोंपर वर्णन तथा प्रकार दिए गए हैं । मुद्राके विषयमें बतानेवाला सबसे प्राचीन ग्रन्थ घेरण्ड संहिता है । हठयोगपर आधारित इस ग्रन्थको महर्षि घेरण्डने लिखा था । घेरण्ड संहितामें २५ और हठयोग प्रदीपिकामें १० मुद्राओंका उल्लेख मिलता है; परन्तु अन्य योगके ग्रन्थोंमें भी अनेक मुद्राओंके विषयमें जानकारी दी गई है; किन्तु प्रमुखत: मुद्रा चिकित्सा पद्धतिके प्रचारक ७२ मुद्राओंका विशेष रूपसे प्रचार-प्रसार करते हैं । इनमेंसे ५० से ६० हस्त मुद्राएं अधिक प्रचलित हैं । – तनुजा ठाकुर
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