आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.४)


‘भाग – २७.३’में हमने करेलेकी पत्तियोंके कुछ प्रयोग व करेलेके लाभके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।

* चर्म रोगमें – करेलेकी न केवल पत्तियां, वरन करेला भी चर्म रोगमें अत्यधिक लाभप्रद है । यह त्वचाके रोगोंके लिए उत्तरदायी कारणोंको शरीरके भीतरसे नष्ट करता है । इसमें विद्यमान ‘बिटर्स’ और ‘एल्केलाइड’ तत्त्व रक्त-शोधकका कार्य करते हैं । करेलेका शाक खाने और करेलेको पीसकर लेप बनाकर रातमें सोते समय लगानेसे फोडे-फुंसी और अन्य त्वचा रोग नहीं होते हैं । दाद, खाज, खुजली, विचर्चिका (सोरिएसिस) जैसे त्वचाके रोगोंमें करेलेके रसमें नींबूका रस मिलाकर पीना लाभप्रद होता है । प्रतिदिन प्रातःकाल और सन्ध्यामें आधा चम्मच करेलेका रस समान मात्रामें मधुके (शहदके) साथ लेनेसे यह रक्तविकारोंको दूर करता है । करेलेका रस कुछ दिवसतक आधा-आधा कप पीना भी लाभदायक है । करेलेमें ‘विटामिन-सी’ होता है, जो एक शक्तिशाली ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) तत्त्व है । यह शरीरके वृद्ध होनेकी प्रक्रियाको धीमा करता है और झुर्रियोंको रोकनेमें सहायता करता है । करेला सूर्यकी पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणोंसे भी त्वचाकी रक्षा करता है ।

* रोग प्रतिरोधक क्षमतामें वृद्धि – करेलेमें विद्यमान खनिज और ‘विटामिन’ शरीरकी रोग प्रतिरोधक क्षमतामें वृद्धि करते हैं, जिससे कर्करोग (कैंसर) जैसे रोगसे भी लडा जा सकता है । प्रतिदिन एकसे दो कप करेलेकी चाय भी पी सकते हैं । करेलेकी चाय बनानेके लिए एक कप उष्ण जलमें ४-५ करेलेके टुकडे भीगनेके लिए छोड दें । पांच मिनट पश्चात इसका सेवन करें ।

* पाचन शक्तिमें वृद्धि –  करेला पाचन शक्तिमें वृद्धि करता है, जिसके कारण भूख बढती है । यदि पाचन शक्ति दुर्बल हो तो किसी भी प्रकार करेलेका नित्य सेवन करनेसे पाचन शक्ति सशक्त होती है । करेला पचनेमें हल्का होता है । यह शरीरमें वायुको बढाकर पाचन क्रियाको तीव्र करता है । प्रति १०० ग्राम करेलेमें लगभग ९२ ग्राम नमी होती है । साथ ही इसमें लगभग ४ ग्राम ‘कार्बोहाइड्रेट’, १५ ग्राम ‘प्रोटीन’, २० मिलीग्राम ‘कैल्शियम’, ७० मिलीग्राम ‘फॉस्फोरस’, १८ मिलीग्राम ‘आयरन’ तथा अल्प मात्रामें वसा भी होती है । ये सभी तत्त्व पाचन शक्तिको अच्छा करते हैं ।

* गठियामें – गठिया रोगका आरम्भ उदरसे होता है । सुननेमें विचित्र प्रतीत हो रहा होगा; परन्तु यही सत्य है । विषैले तत्त्व, जो गठियाके लिए उत्तरदायी हैं, वे अनियमित पाचनसे ही उत्पन्न होते हैं । जब हम पौष्टिक भोजन व समयसे भोजन नहीं करते हैं तो वह पचता नहीं है, जिससे भोजन अति लघु अणुओंमें टूट नहीं पाता है और जो बडे अणु रहते हैं, वे शरीरमें कहीं न कहीं रक्तप्रवाहको रोक देते हैं, जो गठियाका कारण बनता है । करेला पाचन तन्त्रको स्वस्थ करता है । इसमें ‘विटामिन बी-१,२,३’ प्रचुर मात्रामें है और यह शरीरको विषमुक्त करता है; परिणामस्वरूप गठिया ठीक होता है । करेलेका शाक खाने और वेदना वाले स्थानपर करेलेकी पत्तियोंके रससे मर्दन (मालिश) करनेसे लाभ मिलता है । करेले तथा तिलके तेलको समान मात्रामें लेकर प्रयोग करनेसे वात रोगीको लाभ मिलता है । करेलेको बैंगनके भर्तेके रूपमें भी प्रयोग किया जा सकता है । घुटनेकी वेदना होनेपर कच्चे करेलेको अग्निमें भूनकर, भर्ता बनाकर रूईमें लपेटकर घुटनेपर बांधे या जहां भी सूजन या वेदना है, वहां बांधे, इससे अवश्य ही लाभ मिलेगा । करेलेकी पट्टी बांधनेसे सूजन भी अल्प होगी और वेदना भी दूर होगी ।

अगले ‘भाग २७.५’में हम करेलेसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।



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