आइये सीखें संस्कृतनिष्ठ हिन्दी


एक जर्मन मनुष्यको भारत आने हेतु अंग्रेजी सीखनेको निकृष्ट समझना एवं हिन्दीको सहजतासे सीखकर बोल पाना :  तीन-चार वर्षों पूर्वकी घटना है । थॉमस आर्य नामक जर्मन संन्यासी हमारे घरपर आए थे । प्रकाण्ड  एवं हमारी विचारशक्ति कुंठित हो जाए, ऐसी कुशाग्रबुद्धिवाले ‘वेदान्तर्गत अध्यात्मविद्या (मेटाफिजिक्स)’ विषयपर न्यूनतम बीस खण्ड लिखनेका संकल्प कर थॉमस आर्य भारत आए थे । अंग्रेजीपर उनका प्रभुत्व था; परन्तु वे अत्यन्त शुद्ध हिन्दी सहजतासे बोल रहे थे । बातों-बातोंमें उन्होंने कहा, “भारतमें जाना होगा, तो हिन्दी और अंग्रेजी सीखनी होगी’ , ऐसा मुझे निर्देश दिया गया था । मुझे आश्‍चर्य हुआ । अंग्रेजी क्यों ? संस्कृत क्यों नहीं ? एक जर्मन मनुष्यपर अंग्रेजी जैसी घिनौनी, जंगली, अविकसित एवं व्याकरणशून्य भाषा सीखनेकी दुर्दशा क्यों आए ? (Being a German have I to learn that dirty, brutish and ungrammatical English language ?)” – श्री. गिरीश दाबके
सनातन संस्थाद्वारा प्रकाशित राष्ट्रभाषा हिन्दी, दुर्दशा एवं उसके रोकने हेतु उपाय ग्रन्थसे उधृत



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