फारूक अब्दुल्लाका वक्तव्य, ‘इस्लाम’के सिद्धान्तोंका पालन करके, ‘तालिबान’ देगा सुशासन


८ सिंतबर, २०२१
      जम्मू-कश्मीरके पूर्व मुख्यमन्त्री फारूक अब्दुल्लाने ‘तालिबान’ शासनको लेकर कहा, “मुझे अपेक्षा है कि वे (तालिबान), ‘इस्लाम’के सिद्धान्तोंका पालन करते हुए, अफगानिस्तानमें सुशासन देंगे तथा मानवाधिकारोंका सम्मान भी करेंगे, उन्हें प्रत्येक देशके साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित करनेका प्रयास भी करना चाहिए ।”
      अफगानिस्तानपर शासन कर रहे ‘तालिबान’को पाकिस्तान और चीन पूर्वमें ही अपना समर्थन दे चुके हैं, अब, जब ‘तालिबान’ शासनकी घोषणा की गई है, तो शेष देशोंकी भांति, भारतीय शासन भी किसी प्रकारकी शीघ्रतामें नहीं है; परन्तु इन स्वार्थी नेताओंको कौन समझाए ?
      ‘तालिबान’पर अपना मौन खोलनेसे पूर्व, केन्द्र शासनकी दिशा-दृष्टि भी पढ लेते, तो अच्छा ही रहता; परन्तु पढ लेंगे, तो ‘भारतके ताबूतमें अन्तिम कील’वाला वक्तव्य कैसे दे पाएंगे ?
      फारूक अब्दुल्ला, कभी आतङ्क, इस्लाम, मुसलमान, ये सभी शब्द सुनकर विचलित हो जाते हैं, तो कभी कहते हैं कि ‘अल्लाह’ करे कि चीनकी शक्तिसे अनुच्छेद ३७० पुनः आ जाए । कभी कहते हैं कि कश्मीरी नहीं बने रहना चाहते, भारतीय ! ऐसे ही इनपर, आतङ्कीके पुत्रका ‘एमबीबीएस’में प्रवेश दिलवानेका गम्भीर आरोप लगा था ।
      उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तानमें ‘तालिबान’द्वारा प्रधानमन्त्री मुल्ला हसन अखुंद और अब्दुल गनी बरादरको ‘डिप्टी पीएम’ बनाया गया है । वैश्विक आतङ्कियोंकी सूचीमें ‘मोस्ट वॉन्टेड’ रहे सिराजुद्दीन हक्कानीको अफगानिस्तानका गृहमन्त्री बनाया गया है ।
      भारतीय शासनद्वारा ऐसे स्वार्थी नेताओंके विरुद्ध, उनके विशेष अधिकार समाप्त करके, उचित कार्यवाही करनी चाहिए; क्योंकि जिहादियोंका साथ देनेवाला भी जिहादी ही होता है । – सम्पादक, वैदिक उपाासना पीठ
 
 
स्रोत : ऑप इंडिया


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