पूज्या तनुजा ठाकुरका अल्प परिचय

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पूज्या तनुजा ठाकुर, परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेकी शिष्या और वैदिक उपासना पीठकी संस्थापिका हैं । आपके घरका वातावरण आध्यात्मिक होनेके कारण, बाल्यकालसे ही आपका जुडाव अध्यात्मसे रहा । ७ वर्षकी बाल्यावस्थासे ही आप ईश्वरसे वार्तालाप करती आ रही हैं, आप अध्यात्ममें १९ वर्षकी आयुसे ही सक्रिय हो गई थीं, जब अकस्मात आपको यह भान हुआ कि आपमें व्यक्तियोंका भूत और भविष्य देखनेकी शक्ति है । ख्रिस्ताब्द १९९०-९७ के मध्यमें आपने लगभग २०,००० व्यक्तियोंके विषयमें विभिन्न भविष्यवाणियां की थीं, जो समयके साथ सौ प्रतिशत सत्य सिद्ध हुईं । यह विशेष क्षमता आपको किसी साधना, ज्योतिष-शास्त्रके ज्ञान या हस्त-रेखा शास्त्रके ज्ञानके बिना ही प्राप्त हुई । इससे आपको दैविक शक्तिकी शोधमें बडा प्रोत्साहन मिला; यद्यपि वर्तमान समयमें आप भविष्यवाणियां नहीं करती हैं ।
आपके जीवनमें एक नूतन मोड तब आया, जब आप मई १९९७ में प्रथम बार अपने श्रीगुरु परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेसे मुम्बईमें मिलीं और १९९८ में वे सनातन संस्थाकी पूर्णकालिक साधक बन गईं एवं उत्तर भारतके कई राज्योंमें सनातन संस्थाका कार्य किया । आप विद्यार्थी जीवनमें शिक्षा विभागमें व्याप्त भ्रष्टाचारकी ‘ग्रास’ (शिकार हुईं) बनीं थीं और तभी आप भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बन भ्रष्टाचारके पूर्ण निर्मूलन हेतु संकल्पबद्ध हुई थीं; किन्तु ईश्वरकी इच्छा कुछ और ही थी । अपने श्रीगुरुसे साक्षात्कारके पश्चात, समाज परिवर्तन हेतु लौकिक सत्ताकी सेवाकी इच्छाको त्याग, अलौकिक सत्ताकी सेवा करने हेतु प्रेरित हुईं और अपनी उच्च शिक्षा, अपना व्यवसाय प्रबन्धनका (मैनेजमेंट कंसल्टेंसीका) व्यवसाय एवं गृहस्थ जीवनका परित्यागकर, गुरु आज्ञा अनुसार २१ जुलाई १९९८ से ही सनातन संस्थाकी पूर्णकालिक साधक बनकर, भारतवर्षके भिन्न राज्योंमें भ्रमणकर, समाजको साधनाके पथपर अग्रसर करती रहीं ।
ईश्वर आज्ञा अनुसार पौष कृष्ण पक्ष षष्टिको अर्थात २६ दिसम्बर २०१० में आपने ‘उपासना हिन्दू धर्मोत्थान संस्थान’ नामक संस्थाकी स्थापनाकर, धर्मकार्यका श्रीगणेश किया । और जब धर्मकार्यने मात्र तीन वर्षोंमें बृहद स्वरूप ले लिया तो ख्रिस्ताब्द २०१४ की वसन्त पंचमीके दिवस ‘वैदिक उपासना पीठ’ नामक एक और न्यासकी स्थापना, वैश्विक स्तरपर कार्य करने हेतु की है ।
ख्रिस्ताब्द २०११ से ही आप वैदिक सनातन धर्मके मूलभूत सिद्धान्तोंके प्रसार हेतु भारतके अनेक राज्योंके साथ ही विश्वके अनेक देशोंके भ्रमण कर चुकी हैं । आपने भारतके विभिन्न राज्योंमें भ्रमणकर सर्वत्र राष्ट्र-रक्षण, धर्म जाग्रति, अध्यात्म व साधना विषयकपर प्रवचन दिए एवं सामान्य व्यक्ति और साधकोंके लिए आध्यात्मिक उपचारके सत्र भी लिए । ख्रिस्ताब्द २०१३ से ही आप धर्म प्रसार हेतु इटली, जर्मनी, नोर्वे जैसे चौदह देशोंकी यात्रा कर चुकी हैं ।
बाल्यावस्थासे ही पढनेमें विशेष रूचिके कारण आपको धर्म और अध्यात्मके साथ अनेक अन्य विषय जैसे – सूक्ष्म जगत, आयुर्वेद, जैविक खेती, देशी गायोंका पालन-पोषण इत्यादि विषयोंपर आपको व्यापक ज्ञान है ।
जिज्ञासु वृत्ति एवं बाल्यकालसे ही विकसित छठी इन्द्रियके कारण आप सहज ही समाजमें प्रचलित तथ्यों और लोगोंकी जीवन शैलीका स्थूल और सूक्ष्म दृष्टिसे अभ्यास व विश्लेषण किया करती हैं । स्थूल और सूक्ष्म स्तरपर अपने अनुभवों एवं अनुभूतियोंका अवलोकन और विश्लेषणोंका संकलन करना, आपका जैसे नैसर्गिक गुण है । वर्ष २०११ से सामाजिक प्रसार माध्यमों अर्थात ‘सोशल मीडियापर इन्हें आप लेखों, सत्संग व प्रवचनोंके माध्यमसे साझा भी कर रहीं हैं । आपने मई २०२० से, ‘वैदिक उपासना’ नामसे ‘ऑनलाइन’ दैनिक हिन्दी समाचार पत्रिका भी आरम्भ की है, जिसे संस्थाके जालस्थल एवं ‘व्हाट्सऐप्प’पर नियमित प्रसारित किया जाता है, जिससे वैश्विक स्तरपर लाखों लोग प्रतिदिन इससे लाभान्वित हो रहे हैं ।
आपने तीन सौसे अधिक श्रव्य सत्संग भी धर्म, अध्यात्म और राष्ट्र-निर्माण जैसे विषयोंपर ‘व्हाट्सऐप्प’पर जिज्ञासुओं व साधकोंके मार्गदर्शन हेतु ध्वनिमुद्रित किए हैं, जिनमेंसे कुछ आज भी ‘यूट्यूब’के (vedic upasana channel) पर उपलब्ध है एवं इनके पूरे विश्वके अनके श्रोता हैं । इन्हें सुनकर अनेक व्यक्ति साधना भी आरम्भ कर चुके हैं ।
वर्तमान समयमें अनेक साधक जो‘उपासना’के माध्यमसे साधना कर रहे हैं, वे ‘फेसबुक’, ‘यूटयूब’, ‘व्हाट्सऐप्प’ एवं संस्थाके जालस्थानपर उपलब्ध, आपके सरस मार्गदर्शनसे प्रभावित होकर आपसे जुडे और इस प्रकार आपने आधुनिक विज्ञानके प्रसार संसाधनोंका अति सुन्दर उपयोगकर हम सबके समक्ष एक आदर्श रखा है ।

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