श्रीगुरु उवाच

श्रीगुरु उवाच


‘कोई भी दल चुनकर आया, तो भी भारतकी स्थिति और बिगडनेवाली है, यह स्वतन्त्रतासे अभीतक ७४ वर्षोंके अनुभवसे जनताको ज्ञात होनेसे वे चुनावके परिणामकी नहीं; अपितु हिन्दू राष्ट्रकी (ईश्वरीय राज्यकी) स्थापनाकी प्रतीक्षामें हैं !’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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गुरु उवाच : हिन्दुओंको भारतमें कोई भी नहीं पूछता !


‘धर्मान्ध अपने धर्मकी शिक्षाका पालन करते हैं; इसलिए पूरे संसारके लिए भारी पड रहे हैं । इसके विपरीत हिन्दुओमें तथाकथित आधुनिकतावादी बुद्धिप्रमाणवादी और धर्मद्रोही, धर्मके विषयमें सन्देह उत्पन्नकर तथा फूट डालकर, हिन्दुओंको दुर्बल करते हैं । इस कारण हिन्दुओंको भारतमें भी कोई नहीं पूछता !’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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श्रीगुरु उवाच : अभिभावको, बच्चोंका जीवन सार्थक हो, इसलिए उन्हें  साधना सिखाएं !


‘अभिभावक उनके बच्चोंमें कला-गुणोंका विकास हो, इसलिए उनकी रुचिनुसार संगीत, कला इत्यादि कलाओंकी उन्हें शिक्षा देते हैं; परन्तु अत्यल्प अभिभावक बच्चोंका जन्म सार्थक हो, इस हेतु साधना सीखनेमें उनकी सहायता करते    हैं ।’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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श्रीगुरु उवाच : स्वामी विवेकानंदकी अद्वितीयता !


‘कहां साम्यवादी और मुसलमानोंका तुष्टीकरण करनेवाले बंगालके वर्तमान हिन्दू और कहां हिन्दू धर्मको संसारमें सर्वोच्च स्थान दिलानेवाले बंगालके ही रामकृष्ण परमहंसके शिष्य स्वामी विवेकानंद !’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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श्रीगुरु उवाच- कहां किसान और कहां शासकीय कर्मचारी !


‘किसानोंको अवकाश नहीं । वे सप्ताहके सातों दिवस कष्ट सहकर कृषिका कार्य करते हैं, तो भी वह निर्धन होते हैं । इसके विपरीत शासकीय कर्मचारी सप्ताहके पांच दिवस कार्य करते हैं और उनका कार्य कष्टप्रद भी नहीं होता है; इसलिए निर्धनता क्या होती है, यह उन्हें ज्ञात नहीं होता ।’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत […]

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श्रीगुरु उवाच


‘अनेकसे एककी ओर जाना’ यह हिन्दू धर्म सिखाता है । इसके विपरीत ‘विविधता, यह भारतका बलकेन्द्र है’ ऐसा अनेक राजकीय नेताओंका कहना है । वास्तवमें विविधताके कारण ही आज भारतकी परमोच्च अधोगति हुई है ।’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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श्रीगुरु उवाच


‘मस्जिद और चर्चमें साधना सिखाकर और करवाकर लेते हैं । हिन्दुओंके एक भी मन्दिरमें ऐसा न करनेसे हिन्दुओंकी स्थिति दयनीय हुई है ।’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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अति सयाने बुद्धिप्रमाणवादी !


‘साधनाकर सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान होनेपर यज्ञका महत्त्व समझमें आता है । वह न समझनेके कारण अति चतुर तर्कवादी (बुद्धिप्रमाणवादी) बडबडाते फिरते हैं, ‘यज्ञमें वस्तुएं जलानेकी अपेक्षा उन्हें निर्धनोंको दो !’ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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श्रीगुरु उवाच


जो सर्वदलीय शासन, भारतके हिन्दुओंकी सहायता नहीं करते, वे पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि देशोंके हिन्दुओंकी सहायता करेंगे क्या ? – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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श्रीगुरु उवाच


अन्य देशोंके भीतर शत्रु नहीं होते है । भारतके आन्तरिक एवं बाह्य ऐसे दोनों शत्रु हैं । ऐसे शत्रु होनेवाला विश्वका एकमेव देश भारत है । भारतीयोंके लिए यह लज्जास्पद है । – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था

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