प्रेरक प्रसंग

प्रेरक प्रसंग – जीवनमें गुरुकी आवश्यकता क्यों ?


एक गाय घास चरनेके लिए एक वनमें चली गई । सन्ध्या ढलनेवाली थी । उसने देखा कि एक बाघ उसकी ओर दबे पांव बढ रहा है । वह डरके मारे इधर-उधर भागने लगी । वह बाघ भी उसके पीछे दौडने लगा । दौडते हुए गायको सामने एक सरोवर (तालाब) दिखाई दिया । घबराई हुई गाय […]

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प्रेरक प्रसंग : श्रमरहित पराश्रित जीवनसे हो जाते हैं विकासके द्वार बन्द


महर्षि वेदव्यासने एक कीडेको तीव्रतासे भागते हुए देखा । उन्होंने उससे पूछा,  “हे क्षुद्र जन्तु ! तुम इतनी तीव्रतासे कहां जा रहे हो ?” उनके प्रश्नने कीडेको चोट पहुंचाई और वह बोला, “हे महर्षि ! आप तो इतने ज्ञानी हैं । यहां क्षुद्र कौन है और महान कौन ? क्या इस प्रश्न और उसके उत्तरकी […]

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प्रेरक प्रसंग : पवित्र विचार व ईश्वरीय कृपा


एक समय दो साधक एक साथ रहते थे । दोनोंकी भक्तिका मार्ग भिन्न-भिन्न था । एक साधक दिनभर तपस्या और मन्त्रजप करते रहते थे, जबकि दूसरे साधक प्रतिदिन सवेरे-सायं पहले भगवानको भोग लगाते, तदुपरान्त स्वयं भोजन करते थे । एक दिन दोनोंके मध्य विवाद छिड गया कि बडा सन्त कौन है ? इसी मध्य वहां […]

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प्रेरक प्रसंग : महिमा राम नामकी


एक व्यक्ति हिम (बर्फ) बनानेवाली यन्त्रशालामें (कारखानेमें) कार्य करता था । एक दिवस ‘कारखाना’ बन्द होनेसे पूर्व वह अकेला प्रशीतक कक्षका चक्कर लगाने गया तो चूकवश द्वार बन्द हो गया और वह अन्दर ‘बर्फ’वाले भागमें फंस गया I अवकाशका समय था और सब कार्य करनेवाले लोग घर जा रहे थे । किसीने भी अधिक ध्यान […]

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प्रेरक प्रसंग : स्वामी विवेकानंदको मिली गुरु तत्त्वकी प्रतीति


एक दिवस स्वामी विवेकानंद एक रेलयान स्थानकपर (रेलवे स्टेशनपर) बैठे थे । उनका अयाचक व्रत (ऐसा व्रत, जिसमें किसीसे मांगकर भोजन ग्रहण नहीं किया जाता) था । इस व्रतमें वह किसीसे कुछ मांग भी नहीं सकते थे । एक व्यक्ति उनके उपहासके उद्देश्यसे उनके सम्मुख भोजन ग्रहण कर रहा था । स्वामीजीने दो दिवससे भोजन […]

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प्रेरक प्रसंग : विद्वतापर न करें कभी अहंकार


महाकवि कालिदास मार्गपर थे । तृष्णा लगी । वहां एक पनिहारिन पानी भर रही थी । कालिदास बोले : माते ! पानी पिला दीजिए बडा पुण्य होगा । पनिहारिन बोली : पुत्र ! मैं तुम्हें जानती नहीं । अपना परिचय दो । मैं पानी पिला दूंगी । कालिदासने कहा : मैं अतिथि हूं, कृपया पानी […]

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प्रेरक प्रसंग : कथावाचनका प्रभाव


एक राजाके पास एक विद्वान पण्डित आते थे, वह प्रतिदिन राजाको एक कथा सुनाते थे । राजा इस कार्य हेतु उन्हें वेतन भी देते थे, जिससे पण्डितजीकी आजीविकाका प्रबन्ध सुगम हो गया था । यह क्रम अनेक वर्षोंसे निरन्तर चला आ रहा था । एक दिवस राजाने पण्डितजीसे कहा, “विप्रवर, आपके मुखसे कथा श्रवण करते […]

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प्रेरक प्रसंग : मातृ-पितृ भक्तिका फल


महर्षि कश्यपके कुलमें उत्पन्न ब्राह्मण श्रेष्ठ पिप्पल अत्यन्त धर्मात्मा एवं तपस्वी थे । इन्द्रिय संयम, पवित्रता तथा मनको वशमें रखना, उनका स्वभाव बन गया था । उनके तपके प्रभावसे उनके तपस्थली दशारण्यके वन्य जीव-जन्तुओंकी एक-दूसरेसे स्वाभाविक शत्रुता भी नष्ट हो गई थी तथा सभी प्रेमपूर्वक साथ-साथ रहते थे । पिप्पलने इतना कठोर तप किया कि […]

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भगवानका निवास


सृष्टिका निर्माण करनेके पश्चात, इस सृष्टिके रचनाकार विधाता, एक बहुत बडी दुविधामें पड गए । दुविधा और उद्विग्नताका कारण था उनकेद्वारा बनाया गया मनुष्य ! मनुष्योंके साथ कुछ भी अप्रिय होता तो वे सृष्टिके रचनाकारपर अपना क्रोध निकालते थे । जब भी कोई दुःख आता तो मनुष्य भगवानके द्वारपर खडे होकर अपने दुःख गिनाया करते […]

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अधिकार और उपदेश


“जैसे हो अधिकार वैसे करें उपदेश’’ इस कथन अनुसार सन्त मार्गदर्शन करते हैं । एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंसके पास एक भक्त आया । वह थोडा विचलित था ।  स्वामीजीने पूछा, “क्या हुआ ?” भक्तने कहा, “चतुष्पथपर (चौराहेपर) एक व्यक्ति आपको अपशब्द बोल रहा है ।” स्वामीजीने कहा, “वह तुम्हारे गुरुको अपशब्द कह रहा था […]

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