प्रत्याहारं चेन्द्रिययजनं प्राणायां न्यासविधानम् । इष्टे पूजा जप तपभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ॥ अर्थ : प्रत्याहार और इन्द्रियोंका दमन, प्राणायाम, न्यास-विन्यासका विधान, इष्टदेवकी पूजा, मन्त्रजप, तपस्या व भक्ति, इन सबमेंसे कुछ भी श्रीगुरुसे बढकर नहीं है, श्रीगुरुसे बढकर नहीं है ।
गंगा काशी कांची द्वारा मायाऽयोध्याऽवन्ती मथुरा । यमुना रेवा पुष्करतीर्थ न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ॥ अर्थ : गङ्गा, यमुना, रेवा आदि पवित्र नदियां, काशी, काञ्ची, पुरी, हरिद्वार, द्वारिका, उज्जयिनी, मथुरा, अयोध्या आदि पवित्र पुरियां व पुष्करादि तीर्थ भी श्रीगुरुसे बढकर नहीं हैं, श्रीगुरुसे बढकर नहीं हैं ।
शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापनं सारसम्पदः । गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ अर्थ : जिनके चरणामृतका पान करनेसे हम जगतके सारभूत शाश्वत तत्त्वके ज्ञानसे अनुग्रहित हुए हैं, जो भवसागरको सुखा देते हैं, ऐसे श्रीगुरुके चरणोंमें हमारा नमस्कार है ।
एक शास्त्र वचन है, ‘ईश्वरं यत करोति शोभनं करोति’, गुरु ईश्वरीय तत्त्वके प्रतिनिधि होते हैं; इसलिए गुरु भी जो करते हैं वह अच्छेके लिए करते हैं । जिस भक्त, साधक या शिष्यमें यह भाव होता है और वह गुरु या ईश्वरद्वारा निर्मित परिस्थितिमें आनन्दी रहता है, उसका कल्याण सदैव ही होता है ।
ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः । भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ अर्थ : हमारा उन परम पूज्य गुरुदेवको नमस्कार है, जो तत्त्वरूपी मालासे आभूषित होकर ज्ञानकी शक्तिपर आरूढ हैं, जो भोग और मोक्ष दोनोंको प्रदान करनेवाले हैं ।
यदि कोई युवती अपने प्रेमीसे विवाहकर घर बसाती है और कुछ दिवस पश्चात उसे ज्ञात होता है कि विवाह उपरान्त जिस जीवनका वह स्वप्न देखती थी वह तो अत्यन्त मधुर था और यह यथार्थ अत्यन्त कटु है; क्योंकि उसे घरके कार्य करने होते हैं, ससुरालके सभी सगे-सम्बन्धियोंका ध्यान रखना होता है, किसीकी झिडकी और किसीकी […]
सनातन संस्थाकी एक पूर्णकालिक साधक दम्पतिकी पुत्रीको उच्च शिक्षा अन्तर्गत चिकित्सकीय क्षेत्रमें जानेकी इच्छा थी । वह एलोपैथी हेतु प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओंकी पूर्वसिद्धता करनेका सोच रही थी । हमारे श्रीगुरुने उस साधक युवतीसे कहा कि एलोपैथीका कोई भविष्य नहीं है, और आनेवाले कालमें सर्वत्र आयुर्वेदका ही प्रचलन होगा; इसलिए वे उच्चशिक्षा अन्तर्गत […]
आपको हमने परशुराम जन्मस्थलीके सन्त बद्री बाबाके विषयमें बताया ही है । बाबाकी गुरुके प्रति निष्ठा कैसी है ? यह उनके साथ वार्तालापमें ज्ञात हुआ । एक दिवस वे बात ही बातमें कह रहे थे कि मैंने कुछ विशेष नहीं किया । मेरे गुरुने एक बार मुझे कहा था कि मैं तो अब जानापाव नहीं […]
सबसे शीर्षपर होता है शिष्य – जो अपना सर्वस्व गुरुको अर्पण कर मात्र गुरुकार्य हेतु ही जीवित रहता है उसे शिष्य कहते हैं, ऐसे शिष्य पूर्णकालिक साधक होते हैं ! उनके लिए गुरु आज्ञा वेद-वाक्य होता है …..
खरे संतोंके पास तो हम नग्न समान होते हैं उन्हें हमारा अगला-पिछला सर्वकर्म ज्ञात होता हैकुछ व्यक्ति अनेक संतोंसे संपर्क ( जिसे अंग्रेजीमें public relation maintain करना कहते हैं ) बनाए रखते हैं और अपनी इस कृतिकी डींगें सर्वत्र हांंकते फिरते हैं ! खरे संतोंके पास तो हम नग्न समान होते हैं उन्हें हमारा अगला-पिछला […]