जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है । पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धिको बढाता है । – वेदव्यास
अपनी पीडा सह लेना और दूसरे जीवोंको पीडा न पहुंचाना, यही तपस्याका स्वरूप है । – संत तिरुवल्लुवर
फल, मनुष्यके कर्मके अधीन है, बुद्धि, कर्मके अनुसार आगे बढनेवाली है तथापि विद्वान् और महात्मा लोग भली-भांतिसे विचारकर ही कोई कर्म करते हैं । – चाणक्य
गुणोंसे ही मनुष्य महान होता है, ऊंचे आसनपर बैठनेसे नहीं । महलके कितने भी ऊंचे शिखरपर बैठनेसे भी कौआ गरुड नहीं हो जाता । – आर्य चाणक्य
माना जाता है कि मनुष्य जिस संगतिमें रहता है, उसकी छाप उसपर पडती है । उसका निज गुण छुप जाता है और वह संगतिका गुण प्राप्त कर लेता है | – सन्त एकनाथ
जिसने इच्छाका त्याग किया है, उसको घर छोडनेकी क्या आवश्यकता है और जो इच्छाका बंधुआ श्रमिक है, उसको वनमें रहनेसे क्या लाभ हो सकता है ? सच्चा त्यागी जहां रहे वहीं वन और वही भवन, कंदरा है । – वेदव्यास
नेत्रसे अच्छी प्रकार देख-भालकर पांव धरे, वस्त्रसे छान कर जल पिए, शास्त्रसम्मत बात कहें और मनको सदैव पवित्र रखें । आप सदैव सज्जनतासे परिपूर्ण रहेंगे | – आचार्य चाणक्य
फल आनेसे वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षाके समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्तिके समय सज्जन भी नम्र होते हैं, परोपकारियोंका ऐसा ही स्वभाव होता है । – गोस्वामी तुलसीदास
जब भी आप किसी आध्यात्मिक मार्गपर चलनेवाले सक्षम मार्गदर्शकसे मिलते हो, उससे अधिकसे अधिक ज्ञान और उपदेश लेनेका प्रयास करो । जिसप्रकार कोई भी खेत अपने आप कोई फसल नहीं देता, उसीप्रकार प्रत्येक ज्ञानी व्यक्ति अपना ज्ञान स्वयं वितरण करते नहीं फिरता | – श्री स्वामी समर्थ महाराज
गंगाजी प्राणीके पाप नष्ट करती हैं, चन्द्रमा प्राणीके तापको और कल्पतरु व्यक्तिकी दरिद्रताका नाश करता है; परन्तु श्रीगुरुकी एक पल भरकी दृष्टि भी प्राणीके पाप, ताप व दरिद्रताको हर लेती है – नरसिंह सरस्वती महाराज