मनुष्यकी पञ्च ज्ञानेन्द्रियां होती हैं, इसमेंसे एक भी इन्द्रियपर नियन्त्रण न हो तो सारा ज्ञान वैसे ही निकल जाता है जैसे….
यह सृष्टि कर्मप्रधान है, यहां चींटीसे लेकर प्रगत मनुष्यतकको अपने कर्म करने पडते हैं, कर्मके बिना यहां कुछ साध्य नहीं हो सकता है, यहांतक कि यदि भाग्यमें कुछ हो तो उसे पानेके लिए भी कर्म………
जो वस्तु जितनी अधिक सूक्ष्म होती है, उसमें क्षमता भी उतनी ही अधिक होती है ! जैसे बौद्धिक क्षमता सूक्ष्म होनेके कारण वह वृद्धावस्थामें भी साथ देती है; किन्तु शरीर स्थूल होनेके कारण उसकी क्षमता वृद्धावस्था आनेपर घट जाती है या न के समान रह जाती है ! इस सुवचनकी पुष्टि निम्नलिखित शास्त्रवचन करता है […]
हमारे जीवनमें अनेक ऐसे प्रसंग होते हैं, जो जब घटित होते हैं तो वह क्यों हो रहे हैं ?, यह समझमें नहीं आता है; किन्तु उसका कार्यकारण भाव कुछ काल उपरान्त समझमें आता है और तब ईश्वरके प्रति कृतज्ञताका भाव जागृत होता है । शीघ्र ही हम इस लेखमालाको आरम्भ करेंगे ।
महाभारत ग्रन्थका महत्त्व क्या है?, उसका पठन किस दृष्टिसे करना चाहिए?, इसका महत्त्व इस श्लोकसे ज्ञात होता है । द्वैपायनेन यत् प्रोक्तं पुराणं परमर्षिणा । सुरै: ब्रह्मर्षिभिश्चैव श्रुत्वा यदभिपूजितम् ।। तस्याख्यानवरिष्ठस्य विचित्रपदपर्वण: । सूक्ष्मार्थन्याययुक्तस्य वेदार्थैर्भूषितस्य च ।।१८।। भारतस्येतिहासस्य पुण्यां ग्रन्थार्थसंयुताम् । संस्कारोपगतां ब्राह्मीं नानाशास्त्रोपबृंहिताम् ।।१९।। जनमेजयस्य यां राज्ञो वैशम्पायन उक्तवान् । यथावात् स ऋषिस्तुष्ट्या […]
मनो नाम महाव्याघ्रो विषयारण्यभूमिषु । चरत्यत्र न गच्छन्तु साधवो ये मुमुक्षव: ।। – विवेकचूडामणि अर्थ: मन नामका भयंकर व्याघ्र विषयरूपी वनमें घूमता रहता है । जो साधू हैं, मुमुक्षु हैं वे वहां न जाएं । भावार्थ : इस श्लोकमें साधू शब्दका तात्पर्य साधकसे है । मनका कार्य ही है, विचार करना और विचारको आधार चाहिए, […]
समाज कल्याण करनेवालोंके लिए यह सुवचन अत्यंत सुंदर सन्देश देती है । जो दूसरोंका कल्याण करनेका विचार करते हैं, उन्होंने साधनाकर अपनी इन्द्रियोंपर नियंत्रण साध्य करना चाहिए; क्योंकि मनको शुद्ध करनेका एक ही पर्याय……
सन्त-महापुरुषोंके संगसे पाप-ताप सब नष्ट होते हैंं और अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है । सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरितमानसमें सन्त सान्निध्यका महत्त्व बताते हुए कहते हैं – शठ सुधरहिं सतसंगति पाई । पारस परस कुधात सुहाई ।। अर्थात जैसे पारसके स्पर्शसे लोहा सोना बन जाता है, वैसे ही सत्संगतिमें दुष्ट भी सुधर जाते हैं । […]
महाराजा धृतराष्ट्रके लघु भ्राता नीतिके महा पण्डित विदुरने कपटी और दुष्ट शत्रुके विषयमें स्पष्ट शब्दोंमें जैसेसे तैसा वर्तन करनेकी आज्ञा देते हुए कहा है……
मैंने पाया है कुछ तथाकथित साधक सन्तोंसे या अपने गुरुसे झूठ बोलते हैं, शास्त्र कहता है, झूठ बोलना या मिथ्या बोलना पाप है और सन्तोंसे झूठ बोलना एक अक्षम्य अपराध है ! सन्तोंसे कुछ छिपा नहीं होता है; अतः उनसे झूठ बोलकर भी आप उनसे कुछ भी छुपा नहीं सकते हैं अपितु ऐसा करनेसे आपकी […]