अदातृभ्यो हरेद् वित्तं विख्याप्य नृपतिः सदा ।
तथैवाचरतो धर्मो नृपतेः स्यादथाखिलः ॥
अर्थ : भीष्म, युधिष्ठिरसे कहते हैं : जो धन रहते हुए उसका दान न करते हों, ऐसे लोगोंके इस दोषको विख्यात करके राजा सदा धर्मके लिए उनका धन ले ले ऐसा आचरण करनेवाले राजाको सम्पूर्ण धर्मकी प्राप्ति होती है ।
सुखदुःखे समाधाय पुमानन्येन गच्छति ।
अन्येनैव जनः सर्वः संगतो यश्च पार्थिवः ॥
अर्थ : पराशर मुनि, राजा जनकसे कल्याण प्राप्तिके साधनका उपदेश करते हुए कहते हैं : विवेकी पुरुष सुख और दुःखको अपने भीतर विलीन करके अन्य मार्गसे अर्थात मोक्षप्राप्तिके मार्गद्वारा चलता है । जो स्त्री, पुत्र, धन आदिमें आसक्त हैं, वे सब संसारी जीव उससे दूसरे ही मार्गसे चलते हैं; अतः जन्मते और मरते हैं ।
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