देवस्तुति

देव स्तुति


तपसा  दग्ध-देहाय  नित्यं  योगरताय च । नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥ अर्थ : आपने तपस्यासे अपनी देहको दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यासमें तत्पर, भूखसे आतुर और अतृप्त रहते हैं । आपको सर्वदा सर्वदा नमस्कार है ।

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सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते । स्वर्गापवर्गदे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ अर्थ : बुद्धि रूपसे सब लोगोंमें विराजमान रहनेवाली तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली नारायणी देवी ! आपको नमस्कार है ।

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पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् । सुरासुराराधितपादपद्मं  श्रीवैद्यनाथं  तमहं  नमामि ॥ अर्थ : जो भगवान शंकर पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि वैद्यनाथ धाममें सदा ही पार्वती सहित विराजमान हैं और देवता व दानव जिनके चरणकमलोंकी आराधना करते हैं, उन्हीं ‘श्रीवैद्यनाथ’ नामसे विख्यात शिवको मैं प्रणाम करता हूं । —————

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या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ अर्थ : जो देवी सब प्राणियोंमें मातारूपसे स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है । —————

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अधोदृष्टे : नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते । नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥ अर्थ : आपकी दृष्टि अधोमुखी है, आप संवर्तक, मन्दगतिसे चलनेवाले तथा जिसका प्रतीक खड्गके समान है, ऐसे शनिदेवको पुनः-पुनः नमस्कार है ।

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कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितां       पद्मवर्णां       तामिहोप       ह्वये       श्रियम् ॥ अर्थ : जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मन्द-मन्द मुसकुरानेवाली, सोनेके आवरणसे आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूर्णकामा, भक्तनुग्रहकारिणी, कमलके आसनपर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मी देवीका मैं यहां आवाहन करता हूं

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चित्ररत्नविचित्राङ्गं चित्रमालाविभूषितम् । कायरूपधरं    देवं   वन्देऽहं गणनायकम् ॥ अर्थ : विचित्र रत्नोंसे चित्रित अंगोंवाले, विचित्र मालाओंसे विभूषित तथा शरीररूप धारण करनेवाले उन भगवान गणनायक गणेशकी मैं वन्दना करता हूं ।

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अमेयाय  च  हेरम्ब परशुधारकाय  ते । मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥ अर्थ : हे हेरम्ब ! आपको किन्हीं प्रमाणोंद्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करनेवाले हैं, आपका वाहन मूषक    है । आप विश्वेश्वरको बारम्बार नमस्कार है ।

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कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय । सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे् ॥ अर्थ : जो भगवान शंकर सज्जनोंको इस संसार सागरसे पार उतारनेके लिए कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगममें स्थित मान्धाता नगरीमें सदा निवास करते हैं, उन्हीं अद्वितीय ‘ओंकारेश्वर’ नामसे प्रसिद्ध श्रीशिवकी मैं स्तुति करता हूं ।

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तमः स्तोमहारनं जनाज्ञानहारं त्रयीवेदसारं परब्रह्मसारम् । मुनिज्ञानकारं विदूरेविकारं सदा ब्रह्मरुपं गणेशं नमामः ॥ अर्थ : जो अज्ञानान्धकार राशिके नाशक, भक्तजनके अज्ञानके निवारक, तीनों वेदोंके सारस्वरूप, परब्रह्मसार, मुनियोंको ज्ञान देनेवाले तथा मनोविकारोंसे सदा दूर रहनेवाले हैं । उन ब्रह्मरूप गणेशको हम नमस्कार करते हैं ।

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