उष्ण (गर्म) जलकी अपेक्षा शीतल जलसे स्नान करना अधिक हितकारी क्यों होता है ? (भाग-आ) हमारी त्वचामें लाखों रोम-कूप हैं, जिनसे स्वेद निकलता रहता है । इन रोम कूपोंको जहां पर्याप्त प्राणवायुकी आवश्यकता होती है, वहीं उन्हें पोषक तत्त्वोंकी भी आवश्यकता होती है; किन्तु, हमारी त्वचापर प्रतिदिन धूल, मैल, धुआं और स्वेदसे मिलकर जो मैल […]
अनेक सन्तों एवं भविष्यद्रष्टाओंने कहा है कि आनेवाले कुछ वर्ष अत्यन्त क्लेशप्रद होंगे । भारतमें ख्रिस्ताब्द २०२३ से हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनासे पूर्व सर्वत्र अराजकता व्याप्त हो जाएगी, पञ्च तत्त्वोंका प्रकोप….
वज्रासन, सुखासन या पद्मासनमें बैठ कर, अनामिका अंगुलीके अग्र भागसे लगाकर रखनेसे पृथ्वी मुद्रा बनती है । इस मुद्राको करते समय हाथकी शेष अंगुलियोंको सीधी रखें ! वैसे तो पृथ्वी मुद्राको किसी भी आसनमें किया…..
पुरातन कालसे हमारे यहां मिट्टीके पात्रोंका उपयोग होता आया है । कुछ वर्षो पूर्वतक भी गांवमें अनेक घरोंमें मिट्टीके बर्तन उपयोगमें लिए जाते थे । घरोंमें दाल पकाने, दूध ‘गर्म’ करने, दही जमाने, चावल बनाने और आचार रखनेके लिए मिट्टीके बर्तनोंका उपयोग होता रहा है । मिट्टीके बर्तनमें जो भोजन पकता है, उसमें सूक्ष्म पोषक […]
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतिका क्यों करें पोषण ? अ. प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, आगामी आपातकाल हेतु पूरक चिकित्सा पद्धति अनेक सन्तों एवं भविष्यद्रष्टाओंने कहा है कि आनेवाले कुछ वर्ष अत्यन्त क्लेशप्रद होंगे । भारतमें ख्रिस्ताब्द २०२३ से हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनासे पूर्व सर्वत्र अराजकता व्याप्त हो जाएगी, पञ्च तत्त्वोंका प्रकोप, बाह्य आक्रमण, आन्तरिक गृहयुद्ध यह सब घटित तो […]