पुरातन कालसे हमारे यहां मिट्टीके पात्रोंका उपयोग होता आया है । कुछ वर्षो पूर्वतक भी गांवमें अनेक घरोंमें मिट्टीके बर्तन उपयोगमें लिए जाते थे । घरोंमें दाल पकाने, दूध ‘गर्म’ करने, दही जमाने, चावल बनाने और आचार रखनेके लिए मिट्टीके बर्तनोंका उपयोग होता रहा है । मिट्टीके बर्तनमें जो भोजन पकता है, उसमें सूक्ष्म पोषक तत्त्वोंकी (Micronutrients) न्यूनता नहीं होती है, जबकि ‘प्रेशर कूकर’ व अन्य बर्तनोंमें भोजन पकानेसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वोंका प्रमाण घट जाता है, जिससे हमारे भोजनकी पौष्टिकता न्यून हो जाती है । भोजन धीरे-धीरे पकाना चाहिए तभी वह पौष्टिक और स्वादिष्ट पकता है एवं उसके सूक्ष्म पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं तथा उस भोजनके पकने हेतु आवश्यक अग्नि एवं जल तत्त्व, भोज्य पदार्थमें सरलतासे समाविष्ट होते हैं, जो ‘प्रेशर कूकर’में या सूक्ष्म तरंगीय भट्टीमें (माइक्रोवेव) बनानेसे नहीं होता है । आधुनिक शोधोंके अनुसार ‘एल्युमिनियम’के ‘प्रेशर कूकर’में भोजन बनानेसे ८७% पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं एवं रूसी शोधकर्ताओने सूक्ष्म तरंगीय चूल्हेमें (माइक्रोवेव) पके सभी भोज्य पदार्थोंमें ६० से ९०% तक पोषक तत्त्वको नष्ट हुआ पाया है । मिट्टीके बर्तनोंके उपयोगसे भोजनके अन्दर १००% पोषक तत्त्व मिलते हैं । मिट्टीके बर्तनमें बनी दालको भारत सरकारद्वारा ‘केन्द्रीय औषध अनुसन्धान संस्थान’की (Central Drug Research Instititue) प्रयोगशालामें कराए गए परीक्षणोंसे यह बात कई बार पुष्ट हो चुकी है । कांसेके बर्तनोंमें जो भोजन बनता है, उसमें ९७% पोषक तत्त्व विद्यमान रहते हैं । पीतलके बर्तनमें बननेवाले भोजनमें ९३% पोषक तत्त्व विद्यमान रहते हैं । यह सभी तथ्य CDRI की प्रयोगशालासे प्रमाणित हैं । हमारे शरीरको प्रतिदिन १८ प्रकारके सूक्ष्म पोषक तत्त्व चाहिए, जो मिट्टीसे ही आते हैं, जैसे – आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सल्फर, पोटेशियम, ताम्र (कॉपर) आदि । मिट्टीके इन्हीं गुणों और पवित्रताके कारण हमारे यहां पुरीके मन्दिरोंके (उडीसा) साथ ही अन्य कई मन्दिरोंमें आज भी मिट्टीके पात्रोंमें प्रसाद बनता है ।
Leave a Reply