आयुर्वेद

घरका वैद्य – आक (अर्क) (भाग-३)


* गुण धर्म :– दोनों प्रकारके आक रेचक होते हैं ।  वात कुष्ठ, कण्डू विष, व्रण, प्लीहा, गुल्म, अर्श (बवासीर), कफ, उदर-रोग और मल-कृमिको नष्ट करनेवाले होते हैं । – श्वेत आकका पुष्प वीर्यवर्धक, हल्का दीपन, पाचन अरुचि, कफ, अर्श, खांसी तथा श्वास रोगका नाशक है । – लाल आकका पुष्प मधुर, कडवा, ग्राही, कुष्ठ […]

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घरका वैद्य : आक (अर्क) (भाग-४)


* कर्णशूल हेतु : – आकके भली प्रकार पीले पड रहे पत्तोंको थोडासा घी चुपडकर, अग्निपर रख दें, जब वे झुलसने लगें तो त्वरित निकालकर निचोड लें ! इस रसको थोडी उष्ण अवस्थामें ही कानमें डालनेसे तीव्र तथा बहुविधि वेदनायुक्त कर्णशूल शीघ्र नष्ट हो जाता है । – आकके पीले पके हुए, बिना छेदवाले पत्तोंपर […]

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आम (भाग-२)


* रासायनिक घटक : फलमें अन्य तत्त्वोंके अतिरिक्त विटामिन ‘A’, ‘B’ ‘C’, प्रचुर मात्रामें पाए जाते हैं । * गुणधर्म : अ. बीज मज्जा : कफ-पित शामक, स्तभन, मूत्र संग्रहणीय, रक्‍तरोधक, व्रणरोपण । आ. कच्चा फल : त्रिदोषकारक, इ. आगमें भुना हुआ कच्चा फल : दाह प्रशमन, रोचन, दीपन, रक्‍तपित्तहर, शोषक । ई. पका फल […]

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घरका वैद्य : आम (भाग-१)


परिचय : आम भारत वर्ष एवं पूर्वी द्वीप समूहका आदिवासी पौधा है । यह ग्रीष्म प्रधान देशका वृक्ष है, शीतप्रधान देशमें यह उत्पन्न नहीं होता है । हिमालयपर भूटानसे कुमायुंतक इसके वनीय वृक्ष पाए जाते हैं । सम्पूर्ण भारतवर्षमें इसके वृक्ष लगाए जाते हैं और फलते-फूलते हैं । आमके अनेक वर्ग पाए जाते हैं । […]

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घरका वैद्य : तिल (भाग-७)


– तिलके पत्तोंको सिरके अथवा जलमें पीसकर मस्तकपर लेप करनेसे मस्तककी पीडा मिट जाती है । – तिलोंको सिरसकी छाल और सिरकेके साथ पीसकर, मुखपर लगानेसे मुहांसे ठीक हो जाते हैं । – चोट और मोच होनेपर, तिलकी खलीको जलके साथ पीसकर, उष्ण करके बांधनेसे मोचमें लाभ होता है । – तिल और अरंडीको पृथक-पृथक […]

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घरका वैद्य : तिल (भाग- ५)


* बच्चोंका मूत्ररोग : रात्रिमें बच्चे शैय्या गीला कर देते  हैं, उनके लिए तिलका लम्बे समयतक सेवन बहुत     लाभकारी है । – १० ग्राम तिल और १० ग्राम गोखरूको रातभर पानीमें भिगोकर, प्रातःकाल उनका चेप निकालकर, उसमें थोडासा गुडका बूरा डालकर पिलानेसे, बन्द हुआ मासिक धर्म पुनः नियन्त्रित हो जाता है । – तिलको तेलमें […]

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घरका वैद्य : तिल (भाग-६)


* सुजाक : नवीन सुजाकमें इसके स्वच्छ, कोमल और ‘ताजे’ पत्तोंको १२ घण्टेतक  जलमें भिगोकर, उस जलको पिलानेसे अथवा तिलके ५ ग्राम क्षारको दूध या मधुके साथ देनेसे मूत्रकी जलन न्यून हो जाती है और मूत्र सामान्य हो जाता है । – तिलके पौधेकी लकडीकी भस्म, सात ग्रामसे दस ग्रामतक, सिरकेके साथ प्रातः एवं सायं, […]

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घरका वैद्य : तिल (भाग-४)


* अर्श (बवासीर) : तिलके तेलकी बस्ति या ‘एनिमा’ देनेसे गुदाके भीतर, अत्यधिक दूरतक आंते स्निग्ध होकर, मलके गुच्छे निकल जाते हैं, जिससे ‘बवासीर’में लाभ अनुभव होता है । * रक्तातिसार :  तिलोंके ५ ग्राम चूर्णमें समान मात्रामें मिश्री मिलाकर, बकरीके चार गुने दूधके साथ सेवन करनेसे रक्तातिसारमें लाभ होता है । * आमातिसार : […]

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घरका वैद्य : तिल (भाग-३)


* केश : – इसकी जड और पत्तोंके क्वाथसे बाल धोनेसे केशोंपर काला रंग उत्पन्न हो जाता है । – काले तिलोंके तेलको शुद्ध अवस्थामें केशोंमें लगानेसे, केश (बाल) असमय श्वेत नहीं होते । प्रतिदिन सिरमें तिलके तेलसे मर्दन (मालिश) करनेसे केश सदैव कोमल, काले और घने बने रहते हैं । – गंजेपनमें जब सिरके […]

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घरका वैद्य : अदरक (भाग-७)


* वमन : इसके १० ग्राम रसमें, १० ग्राम ‘प्याज’का रस मिलाकर पिलानेसे लाभ होता है । * बहुमूत्र : इसके २ चम्मच रसमें मिश्री मिलाकर, प्रातः एवं सायं सेवन करनेसे लाभ होता है । * अर्शजनित वेदना : दुरालभा और पाठा, बेलका गूदा और पाठा, अजवाइन व पाठा अथवा सोंठ और पाठा, इनमेंसे किसी […]

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