घरका वैद्य – आक (अर्क) (भाग-३)


* गुण धर्म :– दोनों प्रकारके आक रेचक होते हैं ।  वात कुष्ठ, कण्डू विष, व्रण, प्लीहा, गुल्म, अर्श (बवासीर), कफ, उदर-रोग और मल-कृमिको नष्ट करनेवाले होते हैं ।

– श्वेत आकका पुष्प वीर्यवर्धक, हल्का दीपन, पाचन अरुचि, कफ, अर्श, खांसी तथा श्वास रोगका नाशक है ।

– लाल आकका पुष्प मधुर, कडवा, ग्राही, कुष्ठ कृमि, कफ, अर्श (बवासीर) विष, रक्तपित्त, गुल्म तथा ‘सूजन’को नष्ट करनेवाला है ।

– आकका दूध : कडवा, उष्ण, चिकना, खारा, हलका, कोढ, गुल्म तथा उदररोग नाशक है । विरेचन करानेमें यह अति उत्तम है ।

– मूलत्वक : हृदयोतेजक, रक्त-शोधक और शोथहर है । इससे हृदयकी गति एवं संकोच शक्ति बढती है । रक्‍त भार भी बढता है । यह ज्वरध्न और विषमज्वर प्रतिबन्धक है ।

पत्र : दोनों प्रकारके आकके पत्ते वामक, रेचक भ्रमकारक तथा कास श्वास, कर्णशूल, शोथ, उरुस्तम्भ, पामा, कुष्ठ आदि नाशक हैं ।

* औषधीय प्रयोग :

* मुखकी झाई-धब्बे इत्यादिके लिए : हलदीके ३ ग्राम चूर्णको, आकके ५ बूंद दूध व ‘गुलाब’जलमें घोटकर, आंखको बचाकर झाई युक्त स्थानपर लगाएं, इससे लाभ होता है । कोमल प्रकृतिवालोंको आकके दूधके स्थानपर आकका रस प्रयोग करना चाहिए ।

* सिरकी खुजलीके लिए : इसे सिरपर लगानेसे क्लेद, दाह, वेदना एवं कण्डूयुक्त अरुषिकामें लाभ होता है ।

* कर्णरोग : तेल और लवणसे युक्त आकके पत्तोंको वैद्य बाएं हाथमें लेकर, उसे दाहिने हाथसे एक लोहेकी कडछीको ‘गर्म’कर, उसमें डाल दें ! इस प्रकार जो अर्क, पत्रोंका रस निकले, उसे कानमें डालनेसे कानके समस्त रोग दूर होते हैं । कानमें मवाद आना, सनसनाहट होना इत्यादिमें इससे अत्यधिक लाभ होता है ।

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