साधको, जब सन्त कुछ आज्ञा दें या आदेश दें तो उसे प्राथमिकतासे पूर्ण करनेपर उस आज्ञामें निहित सन्तके सङ्कल्पके कारण, उस कृत्यको करने हेतु हमें शक्ति एवं ज्ञान स्वतः ही प्राप्त होते हैं । आज्ञापालन करनेके कारण मनोलय होता है एवं गुरुकृपा मिलती है । जब सन्त कुछ करने हेतु कहते हैं, तो हो सकता […]
एक युवा साधिका उपासनाके आश्रममें सेवा हेतु आई थी । वह प्रथम बार भाईदूजपर अपने घर और भाई से दूर थी । भाईदूजपर उसने अपने भाईको दूरभाष कर शुभकामनाएं दीं । उसने मुझे बताया कि उनके भाईने कहा कि इस बार वे उन्हें अधिक उपहार देंगे; क्योंकि वह त्योहारके समय आश्रममें सेवा दे रही है […]
आज उपासनाकी एक साधिकाने बताया कि आज उनकी माताजीने अपने कुटुम्बके ‘व्हाट्सऐप्प’ गुटपर अपनी चूकें साझा कीं एवं उस गुटके अन्य सदस्योंको भी ऐसा करने हेतु निवेदन किया । उनका यह प्रयास सराहनीय है एवं उनके साधकत्वका द्योतक है एवं अन्योंने भी ऐसा प्रयास करना चाहिए । जब मैं अभी कुछ दिवस पूर्व नासिक गई […]
यदि एक भी लेख मात्र अंग्रेजीमें डाल देती हूं तो कुछ व्यक्ति, जिन्हें विशेषकर अङ्ग्रेजी नहीं आती, वे अपनी तीक्ष्ण शब्दोंमें अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि संस्कृतनिष्ठ हिन्दी सीखनेके लिए कहती हैं तो अङ्ग्रेजीमें क्यों लिखती हैं ? ईश्वरीय कृपासे ५० से अधिक देशोंके लाखों लोग मेरे लेखोंको प्रतिदिन पढते हैं […]
तीन-चार माह पूर्व मैंने हवनके लिए एक सुप्रसिद्ध पूजन सामग्री भण्डारसे लकडी क्रय की थी; क्योंकि वर्षाके कारण आसपासकी लकडियां गीली थीं । मैंने उनसे आमकी लकडी मांगी थी । कल उन लकडियोंको जब एक ग्रामीण श्रमिकको धूप लगाने हेतु बोला तो उसने कहा कि यह तो महुआकी लकडी है, अपने आश्रममें ही तो है […]
हमारे श्रीगुरुके आश्रममें हम सब साधक सेवाके मध्य होनेवाली चूकें लिखा करते थे । हमारे श्रीगुरुने एक अनोखी पद्धति निकाली है, हम सब अपनी चूकें भोजन-कक्षमें लगे फलकपर (बोर्ड) लिखा करते थे । चूकके सम्बन्धमें मैंने सीखा कि चूक लिखते समय अपनी वृत्तिको अन्तर्मुख रखना चाहिए, चूक लिखनेपर उसे पढना चाहिए कि कहीं उसमें दूसरोंकी […]
समाजमें धर्म शिक्षण देते समय अर्थात ब्राह्मण वर्णकी साधना करते समय इन तथ्योंका विशेष ध्यान रखना चाहिए :- • हम जो भी तथ्य समाजको बताने जा रहे हैं, उनका शास्त्रीय आधार होना परम आवश्यक है; अर्थात वह किसी सन्तद्वारा लिखा गया होना चाहिए । • समाजको धर्मशिक्षण देनेसे पूर्व साधकोंको उन तथ्योंका स्वयं […]
साधनाके लिए प्रतिकूल या अनावश्यक साहित्योंका अभ्यास करना शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु साधकोंको साधना हेतु पोषक साहित्यका अभ्यास अवश्य ही करना चाहिए । अब साधकके लिए कौनसे साहित्यका अभ्यास करना आवश्यक है ?, इसके लिए या तो वे जो उनसे साधनासे आगे हैं, उनसे पूछें या अध्यात्मशास्त्रका मूलभूत तत्त्वज्ञान जिन ग्रन्थोंमें हो, पहले उनका अभ्यास […]
दूसरोंसे सेवा कराना जिस दिवससे साधक, साधनाके पथपर अग्रसर होता है, उसी क्षणसे उसें एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त ध्यानमें रखना चाहिए और वह है कि उसे अपने प्रारब्धके कर्म भोगते हुए संचित कर्मको अपनी साधनासे जलाना है तथा नूतन कर्म फल नहीं निर्माण करने हैं, तभी वह इसी जन्ममें जीवनमुक्त हो सकता है । […]
शरीरको विश्रामकी इच्छा जैसा कि आपको बताया ही था कि साधनाका अर्थ तप होता है और तपमें विश्रान्ति कहां होती है ? उसमें तो अपना सर्वस्व झोंकना पडता है और वह भी पूर्ण समर्पण एवं प्रेमसे ! तपसे निर्माण होनेवाली पीडाको जो साधक सहन कर लेता, उसे ही आगे आनन्दकी अनुभूति होती […]