अध्यात्म एवं साधना

समाजमें धर्म शिक्षण देते समय विशेष ध्यान रखने योग्य तथ्य !


समाजमें धर्म शिक्षण देते समय अर्थात ब्राह्मण वर्णकी साधना करते समय इन तथ्योंका विशेष ध्यान रखना चाहिए :- •    हम जो भी तथ्य समाजको बताने जा रहे हैं, उनका शास्त्रीय आधार होना परम आवश्यक है; अर्थात वह किसी सन्तद्वारा लिखा गया होना चाहिए । •    समाजको धर्मशिक्षण देनेसे पूर्व साधकोंको उन तथ्योंका स्वयं […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-१०)


साधनाके लिए प्रतिकूल या अनावश्यक साहित्योंका अभ्यास करना  शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु साधकोंको साधना हेतु पोषक साहित्यका अभ्यास अवश्य ही करना चाहिए । अब साधकके लिए कौनसे साहित्यका अभ्यास करना आवश्यक है ?, इसके लिए या तो वे जो उनसे साधनासे आगे हैं, उनसे पूछें या अध्यात्मशास्त्रका मूलभूत तत्त्वज्ञान जिन ग्रन्थोंमें हो, पहले उनका अभ्यास […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-९)


दूसरोंसे सेवा कराना   जिस दिवससे साधक, साधनाके पथपर अग्रसर होता है, उसी क्षणसे उसें एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त ध्यानमें रखना चाहिए और वह है कि उसे अपने प्रारब्धके कर्म भोगते हुए संचित कर्मको अपनी साधनासे जलाना है तथा नूतन कर्म फल नहीं निर्माण करने हैं, तभी वह इसी जन्ममें जीवनमुक्त हो सकता है ।   […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-८)


शरीरको विश्रामकी इच्छा         जैसा कि आपको बताया ही था कि साधनाका अर्थ तप होता है और तपमें विश्रान्ति कहां होती है ? उसमें तो अपना सर्वस्व झोंकना पडता है और वह भी पूर्ण समर्पण एवं प्रेमसे ! तपसे निर्माण होनेवाली पीडाको जो साधक सहन कर लेता, उसे ही आगे आनन्दकी अनुभूति होती […]

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सधानाके अवरोधक (भाग-७)


प्रसिद्धि पानेकी इच्छा  साधना चाहे कोई सकाम करे या निष्काम, एक स्तर आनेके पश्चात साधकके पास श्री, ऐश्वर्य, ज्ञान इत्यादि स्वतः ही आने लगते हैं, ऐसेमें कुछ साधकोंको लगता है कि उनके इस वैशिष्ट्यको लोग जानें एवं उसे मान दें । साधकके लिए इस प्रकारकी इच्छा उसके पतनका भी कारण बन सकती है; अतः साधकको […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-६)


अपवित्रता   मैकाले शिक्षण पद्धतिमें यदि किसी संस्कारका सर्वाधिक लोप हुआ है तो वह है पवित्रताका ! आज हिन्दुओंको ‘पवित्रता’ शब्दका अर्थ ही ज्ञात नहीं है । आजके धर्मभ्रष्ट हिन्दुओंसे तो विदेशी हिन्दू अच्छे हैं, जो जैसे ही हिन्दू धर्म अनुसार साधना करने लगते हैं, वे पवित्रता शब्दको महत्त्व देने लगते हैं । मेरा जन्म […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-५)


अधैर्य   सहनशीलताको धृति या धैर्य कहा जाता है । यह एक सद्गुण है और अधैर्य एक दुर्गुण है एवं साधनामें यह एक मुख्य अवरोधक होता है । विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो जानेपर भी मनमें चिन्ता, शोक और उदासी उत्पन्न होनेपर मन उद्विग्न हो जाता है और धैर्यके अभावमें अनेक बार साधक अध्यात्मके पथसे दूर हो […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-४)


कुतर्क वर्तमान कालमें यह दुर्गुण अनेक साधकोंमें देखनेको मिलता है । तर्क और कुतर्कमें अन्तर होता है । जिसकी बुद्धि तीक्ष्ण हो, जिसने शास्त्रोंका अभ्यासकर साधना की होती है, वे ही तर्क करनेके अधिकारी होते हैं ।  साम्प्रत कालमें वृत्तिसे तमोगुणी एवं अहंकारी व्यक्ति  बिना ज्ञानके कुतर्क करनेमें सबसे आगे रहता है । यही उसके […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-३)


आलस्य     आलसी व्यक्ति कभी भी अधिक समयतक साधना नहीं कर सकता है । साधना मात्र और मात्र कर्मठ व्यक्ति ही कर सकता है । साधना किसी भी योगमार्गसे की जाए, वह तप ही होता है और तप एवं आलस्य ये दो विरोधाभासी तत्त्व हैं; इसलिए जिन्हें मोक्ष चाहिए, उन्हें आलस्यका त्याग करना होगा […]

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साधनाके अवरोधक (भाग-२)


अस्वस्थता     ।। शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।। – उपनिषद  अर्थात शरीर ही सभी धर्मोंको (कर्तव्योंको) पूरा करनेका साधन है; इसलिए स्वस्थ रहना अति आवश्यक है । अनेक बार मैंने देखा है कि साधक अपने स्वास्थ्यका ध्यान नहीं रखते हैं, अनेक बार उनकी दोषपूर्ण दिनचर्या ही उनके अस्वस्थ होनेका कारण बनती है । कुछ उदाहरण देती […]

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