आध्यात्मिक दृष्टिकोणके अभावमें हम मायाके पद-प्रतिष्ठा, धन-दौलतमें फंसे रहते हैं, इस विश्वमें प्रत्येक वर्ष अनेक लोग मायाके ऊंचे पदको प्राप्त करते हैं एवं कुछ समय पश्चात सेवा निवृत्त होते हैं, जिसके पश्चात उनका महत्त्व भी घट जाता है; परन्तु चिरन्तन यश तो मात्र खरे भक्तोंको और सन्तोंको प्राप्त होता है । आकाशमें ध्रुव तारा, इस […]
अपनी आध्यात्मिक यात्राके मध्य मैंने अहंके कारण साधकोंको कष्ट होते या अटकते हुए देखा है । कुछ साधकोंको बार-बार बतानेपर भी वे अपने अहंको कम करनेका प्रयास नहीं करते हैं; इसलिए सोचा कि अपने अनुभूत किए हुए कुछ तथ्योंको साझा करती हूं । हो सकता है इससे उन्हें ज्ञात हो कि अहं निर्मूलन करना क्यों […]
प्रातः मुखधावन करनेके पश्चात मुखमें ठण्डे जलको भरकर नेत्रोंमें शीतल जलके छीटें मारनेसे नेत्रकी ज्योति बनी रहती है । उदित एवं अस्त होते हुए सूर्यकी लाल किरणोंको देखनेसे भी नेत्र ज्योति बनी रहती है । मल-मूत्र त्याग करते समय अपनी दांतोंको भींचकर नित्य क्रिया करनेसे दांत स्वस्थ रहते हैं । भोजन करनेके पश्चात या कुछ […]
एकान्तमें नेत्र बन्दकर ध्यान करते हुए इन्द्रिय निग्रह करना सरल है, खरा योगी वह है जो इस संसारमें विचरते हुए खुले नेत्रोंसे अपनी इन्द्रियोंका निग्रह कर सके ! कीचडमें रहकर भी, जो कीचडमें न सन पाए ऐसा कमल समान अनासक्त साधक जीव ही, जितेन्द्रिय एवं योगी कहलानेका अधिकारी होता है ।
साधको, जब सन्त कुछ आज्ञा दें या आदेश दें तो उसे प्राथमिकतासे पूर्ण करनेपर उस आज्ञामें निहित सन्तके सङ्कल्पके कारण, उस कृत्यको करने हेतु हमें शक्ति एवं ज्ञान स्वतः ही प्राप्त होते हैं । आज्ञापालन करनेके कारण मनोलय होता है एवं गुरुकृपा मिलती है । जब सन्त कुछ करने हेतु कहते हैं, तो हो सकता […]
एक युवा साधिका उपासनाके आश्रममें सेवा हेतु आई थी । वह प्रथम बार भाईदूजपर अपने घर और भाई से दूर थी । भाईदूजपर उसने अपने भाईको दूरभाष कर शुभकामनाएं दीं । उसने मुझे बताया कि उनके भाईने कहा कि इस बार वे उन्हें अधिक उपहार देंगे; क्योंकि वह त्योहारके समय आश्रममें सेवा दे रही है […]
आज उपासनाकी एक साधिकाने बताया कि आज उनकी माताजीने अपने कुटुम्बके ‘व्हाट्सऐप्प’ गुटपर अपनी चूकें साझा कीं एवं उस गुटके अन्य सदस्योंको भी ऐसा करने हेतु निवेदन किया । उनका यह प्रयास सराहनीय है एवं उनके साधकत्वका द्योतक है एवं अन्योंने भी ऐसा प्रयास करना चाहिए । जब मैं अभी कुछ दिवस पूर्व नासिक गई […]
यदि एक भी लेख मात्र अंग्रेजीमें डाल देती हूं तो कुछ व्यक्ति, जिन्हें विशेषकर अङ्ग्रेजी नहीं आती, वे अपनी तीक्ष्ण शब्दोंमें अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि संस्कृतनिष्ठ हिन्दी सीखनेके लिए कहती हैं तो अङ्ग्रेजीमें क्यों लिखती हैं ? ईश्वरीय कृपासे ५० से अधिक देशोंके लाखों लोग मेरे लेखोंको प्रतिदिन पढते हैं […]
तीन-चार माह पूर्व मैंने हवनके लिए एक सुप्रसिद्ध पूजन सामग्री भण्डारसे लकडी क्रय की थी; क्योंकि वर्षाके कारण आसपासकी लकडियां गीली थीं । मैंने उनसे आमकी लकडी मांगी थी । कल उन लकडियोंको जब एक ग्रामीण श्रमिकको धूप लगाने हेतु बोला तो उसने कहा कि यह तो महुआकी लकडी है, अपने आश्रममें ही तो है […]
हमारे श्रीगुरुके आश्रममें हम सब साधक सेवाके मध्य होनेवाली चूकें लिखा करते थे । हमारे श्रीगुरुने एक अनोखी पद्धति निकाली है, हम सब अपनी चूकें भोजन-कक्षमें लगे फलकपर (बोर्ड) लिखा करते थे । चूकके सम्बन्धमें मैंने सीखा कि चूक लिखते समय अपनी वृत्तिको अन्तर्मुख रखना चाहिए, चूक लिखनेपर उसे पढना चाहिए कि कहीं उसमें दूसरोंकी […]