हमारे श्रीगुरुके आश्रममें हम सब साधक सेवाके मध्य होनेवाली चूकें लिखा करते थे । हमारे श्रीगुरुने एक अनोखी पद्धति निकाली है, हम सब अपनी चूकें भोजन-कक्षमें लगे फलकपर (बोर्ड) लिखा करते थे । चूकके सम्बन्धमें मैंने सीखा कि चूक लिखते समय अपनी वृत्तिको अन्तर्मुख रखना चाहिए, चूक लिखनेपर उसे पढना चाहिए कि कहीं उसमें दूसरोंकी कोई चूक तो परिलक्षित नहीं हो रही है, साथ ही अपने अपने मनके साथ जितना निर्मम होकर चूकें लिखेंगे उस चूकसे निर्माण हुए पापकर्म उतने ही न्यून हो जाएंगे ! चूक अपने लिए लिख रहे हैं, दूसरोंके लिए नहीं, यह ध्यानमें रखकर चूक लिखना चाहिए ! चूक लिखते समय मैं साक्षात भगवानके समक्ष अपनी चूकको बता रहा हूं या बता रही हूं, इस भावसे चूक लिखें ! प्रत्येक चूकसे हम ईश्वरसे दूर जाते हैं, यह ध्यान रख चूकसे निर्माण हुए पापकर्मके परिमार्जन हेतु उसे समष्टिमें अन्तर्मुख होकर स्वीकार करना चाहिए !
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