साहीवाल (सायवाल) : यह प्रजाति भारतमें कहीं भी रह सकती है । ये दुग्ध उत्पादनमें अच्छी होती है । इस जातिकी गायें लाल रंगकी होती हैं । शरीर लम्बा टांगे छोटी होती है । चौडा माथा छोटे सींग और गर्दनके नीचे त्वचा लोर होता है । इसके थन झूलते हुए ढीले रहते है । इसका सामान्यतः भार…..
देशी गाय धैर्य, समृद्धि, आर्थिक एवं आध्यात्मिक सम्पन्नताका दूसरा नाम है । जब भी गोसेवा और गायके महत्त्वकी चर्चा होती है, उसका केन्द्र-बिन्दु भारतीय प्रजातिकी गायें ही होती हैं, जिन्हें सामान्य वार्तालापकी भाषामें देशी गाय कहा जाता है; परन्तु आज यह हमारे देशका दुर्भाग्य है कि एक ओर जहां हमारी देशी गायोंका संरक्षण एवं संवर्धन […]
अथर्ववेद ८.३.२४ – जो गोहत्या करके गायके दूधसे लोगोको वंचित करे, तलवारसे उसका सिर काट दो ! यजुर्वेद १३.४३ – गायका वध मत कर, जो अखण्डीय है ! यजुर्वेद ३०.१८- गोहत्यारेको प्राणदण्ड दो ! ऋग्वेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्यको कह देता हूं कि तुम निर्दोष गायोंकी हत्या मत करो, वह अदिति हैं अर्थात काटने-चीरने […]
१. गायको कभी भी भूलकर अपनी जूठन नहीं खिलानी चाहिए, गोमातामें देवताके तत्त्व होते हैं; इसलिए उन्हें जूठन खिलाकर कोई कैसे सुखी हो सकता है ? २. जिनके मिट्टीके घर होते हैं, उन्होंने प्रतिदिन गायके पवित्र गोबरसे रसोई और पूजाके स्थानको लीपना चाहिए, इससे घरमें सात्त्विकता निर्माण होती है और घरमें अनिष्ट शक्तियां वास नहीं […]
महामहिमामयी गौ हमारी माता हैं, उनकी महिमा अपरम्पार है, वे सभी प्रकारसे पूज्य हैं, शास्त्रोंमें गौमाताकी रक्षा और सेवा एक बहुत ही पुनीत कार्य माना गया है……
पंचगव्यका निर्माण गायके दूध, दही, घी, मूत्र, गोबरके द्वारा किया जाता है । पंचगव्यद्वारा शरीरके रोगनिरोधक क्षमताको बढाकर रोगोंको दूर किया जाता है । गोमूत्रमें प्रति-ऑक्सीकरणकी क्षमताके कारण डीएनएको नष्ट होनेसे बचाया
देशकी स्वतन्त्रताके समय भारतमें गोवंशकी संख्या लगभग अठारह कोटि थी । १९९३ की पशुगणनामें गोवंश घटकर आधेसे भी कम यानी ८ कोटि ८५ लक्ष आठ सहस्र रह गया। दस वर्ष बाद २००३ की पशु गणना में यह और भी घटकर ८,२९,६१,००० पर आ गया। भारतीय शासनने (सरकारने) २००७-२००८ में पंचवार्षिकी पशुगणना कराई थी परंतु इसके […]
गायसे मिलनेवाले घटकोंसे मनुष्यके लिए हानिकारक विकिरणशीलताका (रेडियो एक्टिवीटीका) प्रभाव न्यून होना रशियन वैज्ञानिक एम शिरोविच कहते हैं कि यशस्वी प्रयोगके पश्चात जो जानकारी उन्हें गाय एवं यज्ञ विषयी प्राप्त हुई है , वह भारतीयोंको भी ज्ञात नहीं है । उन्होंने गायके विषयमें निम्न जानकारियां दींं – अ. गायके दूधमें रेडियो विकिरण प्रतीकात्मक शक्ति होती […]
भारतीय कृषिके लिए गोवंशका अधिक उपयोगी होना अनादि कालसे भारत एक कृषि प्रधान एवं शाकाहारी देश रहा है । यहां अधिक वर्षाके कारण कृषिमें घोडेका उपयोग नहीं किया जा सकता है और अधिक उष्णताके(गरमीके) कारण भैंसेसे भी ठीकसे कार्य नहीं चल पाता है; इसीलिए अत्यन्त प्राचीन कालसे ही गोवंशका ही उपयोग कृषिमें भी किया जाता […]
गौमाताका महत्त्व भविष्य पुराणमें लिखा है कि गौमाताके पृष्ठदेशमें ब्रह्मका वास है , गलेमें विष्णुका, मुखमें रुद्रका, मध्यमें समस्त देवताओं और रोमकूपोंमें महर्षिगण, पूंछमें अन्नत नाग, खूरोंमें समस्त पर्वत, गौमूत्रमें गंगादि नदियां, गौमयमें लक्ष्मी और नेत्रोंमें सूर्य-चन्द्रका वास है । गौ सेवा श्रेष्ठ सेवा क्यों ? जिस गौमाताको स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते […]