सधानाके अवरोधक (भाग-७)
प्रसिद्धि पानेकी इच्छा
साधना चाहे कोई सकाम करे या निष्काम, एक स्तर आनेके पश्चात साधकके पास श्री, ऐश्वर्य, ज्ञान इत्यादि स्वतः ही आने लगते हैं, ऐसेमें कुछ साधकोंको लगता है कि उनके इस वैशिष्ट्यको लोग जानें एवं उसे मान दें ।
साधकके लिए इस प्रकारकी इच्छा उसके पतनका भी कारण बन सकती है; अतः साधकको सदैव ही अपना ध्यान अपने मूल ध्येयपर केन्द्रित रखना चाहिए और वह है, ईश्वरप्राप्ति या मोक्ष पाना ! साधनाके प्रतिफलके रूपमें साधकको जो भी मिलता है, उससे उसका ध्यान यदि अपने मूल लक्ष्यसे भटक जाए तो वह साधक नहीं रहता है ।
स्वयंके लयकी प्रक्रियाको साधना कहते हैं, जहां इस मूल तथ्यको छोडकर, ‘मुझे मान मिले’, यह भाव आने लगता है तो अहं बढने लगता है और इससे साधककी अधोगति होने लगती है ! इसलिए साधकको मान-अपमान दोनों ही स्थितिमें समभाव रहना चाहिए और अपने ध्येयकी ओर सतत अग्रसर होते रहना चाहिए !
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