पृथ्वी मुद्रा


पृथ्वी मुद्राको अग्नि-शामक मुद्रा भी कहते है, इस मुद्राके नियमित अभ्याससे पृथ्वी तत्त्व कि न्यूनता (कमी) पूरी होती है ।
विधि : वज्रासन, सुखासन या पद्मासनमें बैठ कर, अनामिका अंगुलीके अग्र भागसे लगाकर रखनेसे पृथ्वी मुद्रा बनती है । इस मुद्राको करते समय हाथकी शेष अंगुलियोंको सीधी रखें ! वैसे तो पृथ्वी मुद्राको किसी भी आसनमें किया जा सकता है; परन्तु इसे वज्र आसनमें करना अधिक लाभकारी है; अत: यथासम्भव इस मुद्राको वज्रासनमें बैठ कर करना चाहिए । अग्नि तत्व, शरीरके तापमान एवं चयापचयको (मेटाबोलिज्म) नियन्त्रित करता है; अत:पृथ्वी मुद्राको पृथ्वी-वर्धक मुद्रा भी कहा जाता है, यह बढे हुए अग्नि तत्त्वको घटाता है जिस कारण ज्वर, शोथ (सुजन) और दर्बलताको दूर करनेमें लाभकारी है । यह मुद्रा, पित्त –प्रधान व्यक्तिके लिए अति उत्तम मुद्रा है ।

पृथ्वी मुद्रासे होनेवाले लाभ

  • शरीरमें स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है । सात्त्विक गुणोंका विकास करती है ।
  • दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है, शरीरका भार (वजन) बढता है या शरीरकी ऊंचाई अनुसार सन्तुलित हो जाता है, जीवनी–शक्तिका विकास होता है ।
  • यह मुद्रा पाचन–तन्त्रको स्वस्थ करती है । इस मुद्राको भोजनके पश्चात् १६ मिनिट तक किया जा सकता है, ऐसा करनेसे पाचन क्रियासे सम्बन्धित रोग दूर होते हैं ।
  • सभी प्रकारके विटामिनोंकी ‘कमी’को दूर करती है ।
  • पृथ्वी मुद्राके अभ्याससे नेत्र, कान, नाक और गलेके समस्त रोग दूर हो जाते हैं । पृथ्वी मुद्रा करनेसे कंठ सुरीला हो जाता है । गलेमें बार-बार खराश होना, गलेमें वेदना रहना जैसे रोगोंमें बहुत लाभ मिलता है ।
  • पृथ्वी मुद्राको प्रतिदिन करनेसे महिलाओंके सौन्दर्यमें वृद्धि होती है, मुखपर जो भी दाग – धब्बे होते हैं, वे इसके नियमित अभ्याससे दूर होते है एवं सम्पूर्ण शरीर कान्तिमय हो जाता है । चर्मरोगके लिए विशेष कर सूखी त्वचाके लिए उपयुक्त है, यह मुद्रा त्वचामें जलनका नाश करती है ।
  • शरीरमें ठोस तत्त्व और तेलकी मात्रा बढाने केलिए पृथ्वी मुद्रा सर्वोत्तम है ।
  • केशसे सम्बन्धित सर्व समस्याओंको दूर करनेमें यह मुद्रा अत्यन्त लाभप्रद है । जिनके केश अल्पायुमें पकने आरम्भ हुए हों, वे यदि कुछ माह इस मुद्राका नियमित अभ्यास करें तो केश पुनः काले हो जाते हैं ।
  • अस्थि-भंग (हड्डियोंके टूटनेपर) होनेपर यह मुद्रा करनेसे अस्थियां शीघ्र जुडती है । अस्थिसंधिशोथमें (ओस्टीयोअरिथ्रायटिस) यह मुद्रा लाभकारी है ।
  • जिन्हें शीघ्र थकावट हो जाती है, उनके लिए भी यह मुद्रा लाभकारी है ।

आध्यत्मिक लाभ : हस्त मुद्राओंमें पृथ्वी मुद्राका अत्यधिक महत्त्व है, यह हमारे भीतर पृथ्वी तत्त्वको संतुलित या जागृत करती है । पृथ्वी मुद्राके अभ्याससे मनमें वैराग्य भाव उत्त्पन्न होता है । जिस प्रकारसे पृथ्वी मां, प्रत्येक स्थिति जैसे –‘सर्दी’, ‘गर्मी’, वर्षा आदिको सहन करती है एवं प्राणियोंद्वारा मलमूत्र आदिसे स्वयं अस्वच होनेपर भी उन्हें क्षमा कर देती है, वैसे ही करुणा, प्रसन्नता, क्षमा, धैर्य एवं स्थिरता जैसे दिव्य गुण, इस मुद्राके नियमित अभ्यासमें आत्मसात् होते हैं ।

वैसे किसी भी समय एवं कहीं भी इस मुद्राको कर सकते हैं । इस मुद्राको ४५ मिनिटसे अधिक समय भी किया जा सकता है । किसी रोगके निवारण हेतु इसे नियमित ४५ मिनिट करना आवश्यक है । यह मुद्रा प्रात:काल ६ से १० बजेके मध्य करनेसे अधिक अच्छे परिणाम आते हैं ।

सावधानी – कफप्रधान लोगोंने इस मुद्राको सयंमित रूपसे करना चाहिए या मुद्रा विशेषज्ञसे पूछ कर करना चाहिए । – तनुजा ठाकुर                



One response to “पृथ्वी मुद्रा”

  1. Ankit says:

    Kaya m prthvi mudra ke sath kuber mudra kar sakta hu please reply please please me bhot jada tansan me hu

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