अथ यन्मोहसंयुक्तमव्यक्तविषयं भवेत् ।
अप्रतर्क्यमविज्ञेयं तमस्तदुपधारयेत्॥
अर्थ : भीष्म, युधिष्ठिरसे कहते हैं – जब मनमें कोई मोहयुक्त भाव उत्पन्न हो और किसी भी इन्द्रियका विषय स्पष्ट न जान पडे, उसके विषयमें कोई तर्क भी कार्य न करे और वह किसी प्रकार समझमें न आए, तब यही निश्चय करना चाहिए कितमोगुणकी वृद्धि हुई है ।
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विद्या शौर्यं च दाक्ष्यं च बलं धैर्यं च पञ्चमम् ।
मित्राणि सहजान्याहुर्वर्तयन्तीह तैर्बुधाः ।
अर्थ : शत्रुसे सावधान रहनेके विषयमें युधिष्ठिरको भीष्म, राजा ब्रह्मदत्त तथा पूजनी चिडिया संवाद सुनाते हैं । पूजनी चिडिया कहती है, “विद्या, शूरवीरता, दक्षता, बल और पाञ्चवां धैर्य – ये पाञ्च मनुष्यके स्वाभाविक मित्र बताए गए हैं । विद्वान पुरुष इनके द्वारा ही इस जगतमें सारे कार्य करते हैं ।’’
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