किसे सर्वदा सुख मिला है और किसे सर्वदा दु:ख मिला है ? सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं । – कालिदास
धर्मसे अर्थ उत्पन होता है । धर्मसे सुख होता है । धर्मसे मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है । धर्म जगतका सार है । – वाल्मीकि
जिस मनुष्यकी बुद्धि दुर्भावनासे युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियोंको वशमें नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थकी बातोंको सुननेकी इच्छा होनेपर भी उन्हें पूर्ण रूपसे समझ नहीं सकता । – वेदव्यास
स्नेह शून्य सब वस्तुओंको अपने लिए मानते हैं । स्नेह संपन्न अपने शरीरको भी दूसरोंका मानते हैं ।- तिरुवललुवर
ईश्वर न तो काष्ठमें विद्यमान रहता है, न पाषाणमें और न ही मिट्टीकी मूर्तिमें । वह तो भावोंमें निवास करता है । – चाणक्य
मनमें संतोष होना स्वर्गकी प्राप्तिसे भी बढकर है, संतोष ही सबसे बडा सुख है । संतोष यदि मनमें भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढकर संसारमें कुछ भी नहीं है ।- वेदव्यास
कबीर कहते हैं कि एक छोटेसे तिनकेकी भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवोंके नीचे दब जाता है । यदि कभी वह तिनका उडकर नेत्रमें आ गिरे तो कितनी गहरी पीडा होती है ! – कबीर दास
वास्तवमें धीर पुरुष वे ही हैं, जिनका चित्त विकार उत्पन्न करनेवाली परिस्थितियोंमें भी अस्थिर नहीं होता । – कालिदास
जो मनुष्य नाश होनेवाले सब प्राणियोंमें समभावसे रहनेवाले अविनाशी परमेश्वरको देखता है, वही सत्यको देखता है । – वेदव्यास