गुरु वन्दना


प्रत्याहारं  चेन्द्रिययजनं  प्राणायां  न्यासविधानम् ।

इष्टे पूजा जप तपभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ॥

अर्थ : प्रत्याहार और इन्द्रियोंका दमन, प्राणायाम, न्यास-विन्यासका विधान, इष्टदेवकी पूजा, मन्त्रजप, तपस्या व भक्ति, इन सबमेंसे कुछ भी श्रीगुरुसे बढकर नहीं है, श्रीगुरुसे बढकर नहीं है ।



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