एक राजा जो बहुत परोपकारी थे, उनके पास बहुत ही सुन्दर और विशाल चन्दनका उद्यान था, जिससे प्रत्येक वर्ष सहस्रों रुपयेका चन्दन अन्य देशोंको जाता था, जिससे तेल और पुष्पसार (इत्र) बनाए जाते थे । एक दिन, राजा उनके सैनिकोंके साथ घोडोंपर आरूढ (सवार) होकर अपने प्रजाजनकी स्थिति जाननेके उद्देश्यसे अपने राजभवनसे निकले । लौटते […]
अध्यात्मशास्त्रका अभ्यास नहीं होनेके कारण कुछ साधक अपने गुरुका या सन्तका आधार लेकर उनके बाह्य आचरणका अनुकरण करते हैं; परन्तु ऐसा करना अयोग्य है । सन्तोंका मन ईश्वरसे एकरूप होता है; अतः उनका बाह्य आचरण उनकी साधनाको प्रभावित नहीं करता । सन्तोंने किस प्रकार साधनाकी ? जिससे वे सन्त बने, इसकी अपेक्षा सन्तकी स्थूल कृतिका […]
सेवाका महत्त्व पाण्डवोंका वनवासकाल समाप्त हो गया था । दुर्योधनने युद्धके बिना उन्हें पांच गांव भी देना स्वीकार नहीं किया । युद्ध अनिवार्य समझ दोनों पक्षोंने अपने-अपने दूत भेजे । मद्रराज शल्य यह समाचार सुन अपने महारथी पुत्रोंके साथ एक अक्षोहिणी सेना लेकर पाण्डवोंके पास चले । शल्य, नकुल व सहदेवके मामा थे । पाण्डवोंको […]
एक बारकी बात है, राजा एवं महामन्त्रीने मार्गमें किसी ब्राह्मणको भिक्षा मांगते देखा । राजाने महामन्त्रीसे पूछा : यह क्या है ? महामन्त्रीने तत्काल कहा : महाराज ! भूला हुआ है । राजाने कहा : तो इस पण्डितको पथपर लाओ । महामन्त्रीने कहा : आ जाएगा, राजन ! परन्तु समय लगेगा । कृपया तीन माहकी […]
जो इच्छा कर ही मन माही, प्रभु कृपा कछु दुर्लभ नाहीं । एक बार नारदजीने भगवानसे प्रश्न किया कि प्रभु आपके भक्त निर्धन क्यों होते हैं ? तो भगवान बोले, “नारद जी ! मेरी कृपाको समझना बडा कठिन है ।” इतना कहकर भगवान नारदके साथ साधु भेषमें पृथ्वीपर पधारे और एक सेठजीके घर भिक्षा मांगनेके […]
एक नगरमे एक महात्माजी रहते थे और नदीके मध्य भगवानका मन्दिर था और वहां प्रतिदिन कई व्यक्ति दर्शनको आते थे और ईश्वरको चढाने हेतु कुछ न कुछ लेकर आते थे । एक दिवस महात्माजी अपने कुछ शिष्योंके साथ नगर भ्रमणको गए तो मध्य पथमे उन्होंने एक फलवालेके पास एक व्यक्तिको देखा, जो कह रहा था […]
यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोणसे देखा जाए तो सुदामाजी बहुत धनवान थे । जितना धन उनके पास था, किसीके पास भी नहीं था; परन्तु यदि भौतिक दृष्टिसे देखा जाए तो सुदामाजी बहुत निर्धन थे; अन्ततः ऐसा क्यों ? एक बहुत ही निर्धन ब्राह्मणी थी । भिक्षा मांगकर जीवनयापन करती थी । एक समय ऐसा आया कि पांच […]
एक बार मैं रेलगाडीसे आ रहा था, मेरे साथवाले स्थानपर एक वृद्ध स्त्री बैठी थी जो निरन्तर रो रही थी । मैंने बार-बार पूछा, “मां क्या हुआ, मां क्या हुआ ?” बहुत पूछनेके पश्चात मांने एक ‘लिफाफा’ मेरे हाथमें रख दिया । मैंने ‘लिफाफा’ खोलकर देखा उसमें चार पेडे, २०० रूपये और पुष्पसारसे (इत्रसे) सने […]
यह प्रसङ्ग उस समयका है जब भगवान श्रीरामने लंका पहुंचनेके लिए सेतु निर्माणके पूर्व समुद्र तटपर शिवलिङ्ग स्थापित किया था । जब समुद्रपर सेतुबन्धनका कार्य हो रहा था तब भगवान श्रीरामने वहां गणेशजी तथा नौ ग्रहोंकी स्थापनाके पश्चात शिवलिङ्ग स्थापित करनेका विचार किया । उन्होंने शुभ मुहूर्तमें शिवलिङ्ग लाने हेतु हनुमानजीको काशी भेजा । […]
सिंहकेतु, पाञ्चाल देशका एक राजा था । वह परम शिवभक्त था । शिवकी आराधना एवं आखेट (शिकार) उसके दो प्रिय विषय थे । वह प्रतिदिन आखेटके उद्देश्यसे वनमें जाता था । एक दिवस घने वनमें सिंहकेतुको एक ध्वस्त मन्दिर दिखा । राजा आखेटकी धुनमें आगे बढ गया; किन्तु सेवक भीलने ध्यानसे देखा तो वह […]