श्रीगुरु उवाच

इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति तथा राष्ट्र व धर्मकी स्थिति’


‘इच्छाशक्तिके कारण ‘कुछ करना चाहिए’ ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है । क्रियाशक्तिके कारण प्रत्यक्ष कृति करनेकी प्रेरणा मिलती है । कुछ करनेकी इच्छा उत्पन्न होने और प्रत्यक्ष कृति करनेके लिए ज्ञानशक्तिकी सहायता होनेपर ही योग्य इच्छा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप योग्य कृति होती है । अन्य पंथियोंको उनकी साधनाके कारण ज्ञानशक्ति सहायता करती है […]

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श्रीगुरु उवाच


साधको, कृतज्ञता भावमें रहते हुए अन्योंकी तुलनामें अपनी प्रगति अल्प हो रही है, यह सोचकर मनमें निराशा लानेसे अच्छा है आनन्दपूर्वक साधना करना, इससे साधना अच्छेसे करनेमें सहायता होगी । साधक स्वभाव दोषोंकी सारिणी लिखते हैं, स्वभाव दोष दूर करनेके लिए स्वयंसूचनाएं देते हैं, साधक इतना करते तो योग्य होता; परन्तु कुछ साधक दिनभर स्वभाव […]

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श्रीगुरु उवाच


(हम साधना नहीं करेंगे परन्तु) हमारी संतान श्राद्ध कर, हमारा आगेका मार्ग सरल करे, ऐसा कहनेवाले पिता ! एक साधकको एक पुत्री है । वह अपने माता-पिताका इकलौता पुत्र है । उसके पिता उसे सतत् कहते हैं कि उसे एक पुत्र होना चाहिए । साधकने उनसे पूछा क्यों ? तो वे बोले, आगे मेरा और […]

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श्रीगुरु उवाच


पहले सभी व्यक्ति पालथी मारकर बैठकर भोजनका सेवन, लेखन इत्यादि सब कुछ करते थे । आजकल सब कुछ पटल (टेबल) और आसंदीका (कुर्सीका) उपयोगकर किया जाता है; इसलिए पैरोंके घुटने पूर्ण रूपसे झुकते नहीं हैं, फलस्वरूप पालथी मारकर बैठ पाना कठिन होता है । आगे शौचालयमें भी नीचे बैठना सम्भव नहीं होता, इतना ही नहीं, […]

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श्रीगुरु उवाच


प्रत्येकने साधना क्यों करना चाहिए ? कुटुंबका स्थान व्यक्तिसे श्रेष्ठ होता है, नगरका स्थान (कस्बा, ग्राम इत्यादि ) कुटुंबसे श्रेष्ठ होता है और नगरसे राष्ट्रका स्थान श्रेष्ठ होता है एवं धर्मका स्थान इस सबसे सर्वोपरि होता है क्योंकि धर्म ही मोक्ष प्रदान कर सकता है, शेष सर्व व्यक्तिको मायामें लिप्त करता है अतः प्रत्येकने साधना […]

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विज्ञानको अध्यात्मके आधारके अतिरिक्त पर्याय नहीं !


विज्ञानके माध्यमसे धर्मकी कोई बात सिद्ध होती है, अर्थात् वह बात विज्ञानको पूर्वसे ज्ञात नहीं होती; परन्तु धर्मको ज्ञात होती है । वह बात बतानेवाले विज्ञानकी धर्मको बैसाखियोंकी आवश्यकता नहीं; किन्तु विज्ञानको अध्यात्मके आधार अतिरिक्त पर्याय नहीं ।- परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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प्रचलित चुनाव प्रक्रियामें अच्छे-बुरेका अभिज्ञान(पहचान) कैसे करें ?


स्वतंत्रताके पश्‍चात ६६ वर्ष भारतपर राज्य करनेवाले लोकतंत्रके कारण समाज, राष्ट्र और धर्मका परम अधोगति हुई है । लोकतंत्रकी प्रचलित चुनाव प्रक्रियाने समाज, राष्ट्र और धर्मका उत्कर्ष करनेवाला एक भी राज्यकर्ता नहीं दिया, यह एक भीषण सत्य है । चुनावोंके माध्यमसे कुछ साध्य नहीं होता; किंतु सर्पसे भला बिच्छू ! इस सिद्धांतके अनुसार लोकप्रतिनिधि चुने […]

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राज्यकर्ताओंको हिंदु धर्मका अभ्यास नहीं है !


कसीनोके कारण १५० कोटिका आय करके रूपमें मिलता है इसलिए उसे चालू रखनेकी अनुमति देनेवाले भाजपाके गोवाके मुख्यमंत्रीको निम्नलिखित सूत्र ज्ञात है क्या ? १.  धर्माधिष्ठित राज्य होनेपर ईश्वर शासनको कभी पैसे कम नहीं पडने देते हैं | २.  जुआका लाखो व्यक्तिपर संस्कार होनेके कारण ( जाऊ का व्यसन होना ) राज्यकर्ताको पाप लगता है […]

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