श्रीगुरु उवाच


पहले सभी व्यक्ति पालथी मारकर बैठकर भोजनका सेवन, लेखन इत्यादि सब कुछ करते थे । आजकल सब कुछ पटल (टेबल) और आसंदीका (कुर्सीका) उपयोगकर किया जाता है; इसलिए पैरोंके घुटने पूर्ण रूपसे झुकते नहीं हैं, फलस्वरूप पालथी मारकर बैठ पाना कठिन होता है । आगे शौचालयमें भी नीचे बैठना सम्भव नहीं होता, इतना ही नहीं, ‘कमोड’पर भी बैठना नहीं हो पाता है । ऐसे कष्ट न हों, इसलिए घरमें भोजन, लेखन, वाचन इत्यादि हेतु पालथी मारकर बैठना आवश्यक है । – परात्पर गुरु डॉ जयंत आठवले (३०.७.२०१३)



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