हिन्दुओंके लिए सर्वसमावेशक एकताकी आवश्यकता : १. ‘भारतमें आज हिन्दू बहुसंख्य हैं; किंतु जात, दल, संप्रदाय, प्रांत, भाषा, इत्यादि पृथक घटकोंमें हिन्दुओंके इस सामर्थ्यका बंटवारा हुआ है । हिन्दुओंकी संघशक्तिके इस ह्रासके कारण ही अन्य धर्मीय अल्पसंख्यक होकर भी हिन्दू धर्म एवं समाजपर पृथक प्रकारसे (उदा. लव जिहाद, धार्मिक हिंसा, हिन्दुत्वनिष्ठोंकी हत्या, धर्मांतरण इत्यादि) अत्याचार […]
१. मद्य, धूम्रपान, बीडी, तम्बाकू इत्यादि मादक (नशीले) पदार्थोंका उत्पादन ही नहीं हो, ऐसे कृत्य करनेकी अपेक्षा शासन केवल उनके अनिष्ट परिणामोंके सन्दर्भमें अपने विचार वक्तव्य करता है । २. नदीका जल प्रदूषित नहीं हो, इसकी अपेक्षा शासन जलशुद्धिकरणका केवल बहाना करता है । ३. अधिक मात्रामें अवैध रूपसे (तस्करीद्वारा) वृक्ष काटनेवालोंपर शासन किसी भी […]
सभी धर्मोंको एक धरातलपर देखना या उन्हें समान बताना उतना ही हास्यास्पद है जितना कि एक प्राथमिक पाठशालाके विद्यार्थीको किसी महाविद्यालयीन स्नातकके समान तुलना करना ! – परात्पर गुरु डॉ जयंत आठवले
सचका झूठ (असत्य) और झूठका सच करनेवाले अधिवक्ता, हिन्दू राष्ट्रमें नहीं होंगे ! इतना ही नहीं, अपितु अधिवक्ता ही नहीं होंगे; इसलिए अभियोगके परिणाममें कुछ सप्ताहसे कुछ माह, ऐसी अल्प कालावधि लगेगी ! – परात्पर गुरु परम पूज्य डॉ. जयंत आठवले (२३.४.२०१५)
मायाका सर्वज्ञान जिसे हो, वे देवता ! संतोंकी सर्वज्ञता उनके भक्तोंके सन्दर्भमें तथा गुरुकी सर्वज्ञता शिष्योंके सन्दर्भमें होती है; परन्तु उन्हें मायाके सर्व विषयोंका (उदा. संगणक सुधारना, वाहन चलाना इत्यादि) ज्ञान होगा ही है, ऐसा नहीं है; परन्तु देवताको मायाके सभी विषयोंका ज्ञान होता है । – परात्पर गुरु परम पूज्य डॉ. जयंत आठवले (१२.२.२०१५)
हमने हिन्दुत्वके लिए पिछले ३० से ५० वर्षोंमें कुछ नहीं किया, आगे भी ‘कुछ न करेंगे, न करने देंगे’, ऐसी प्रवृत्तिके अनेक बलाढ्य हिन्दुत्ववादी संगठन, कार्य करनेवाले छोटे संगठनोंका विरोध करनेमें, अपना पुरुषार्थ समझते हैं ! –परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले(२४.४.२०१५)
अध्यात्ममें गुरुप्राप्ति होना अर्थात शिष्य पद प्राप्त करना, यह आध्यात्मिक यात्राका एक महत्वपूर्ण चरण है । शिष्य होनेके पश्चात गुरुकी सर्व आज्ञाका पालन करें, ऐसा लगता है । आज्ञापालन होनेके कारण मन एवं बुद्धिके लयकी प्रक्रियाको गति मिलती है; फलस्वरूप अन्य कोई भी साधनामार्गकी अपेक्षा मनोलय और बुद्धिलय शीघ्र होनेके कारण शिष्य सन्त पदपर शीघ्र […]
अपने पदके अहंकारमें लिप्त राजनेता सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था, अर्थात शासकीय कर्मचारी, अधिकारी एवं पुलिस, इनके माध्यमसे समाज, राष्ट्र एवं धर्मविरोधी कृति करते हैं । इसलिए व्यक्ति एवं समाजपर अन्याय होता है; फलस्वरूप राष्ट्र और धर्मकी अत्यधिक हानि होती है । अनेक बार शासकीय कर्मचारी, अधिकारी एवं पुलिस, यदि इन्हें राष्ट्र एवं धर्म-विरोधी कृति करनेकी इच्छा […]
दूसरोंको दोष न देकर अपने दोष दूर करें ! कुछ साधकोंको लगता है कि यह साधक मेरे साथ बातें नहीं करता है, अन्य व्यक्तियोंसे अच्छेसे बोलता है; परन्तु उन्हें इसका बोध होना चाहिये कि कोई सबसे अच्छेसे बोलता है, केवल मुझसे नहीं बोलता अर्थात मुझमें ही कोई त्रुटि है, उस दोषको दूर करनेपर वह आपसे […]
किसीको क्रिकेट, किसीको संगीत, किसीको नृत्य, किसीको घूमना, भिन्न स्थानोंपर जाना, इसप्रकार विविध रुचियां होती हैं । इसीप्रकार कुछको भजन, कीर्तन या प्रवचनमें जाना, तो कुछको सन्तोंके पास जाना रुचिकर होता है । पहली रुचिसे दूसरी रुचि अधिक योग्य है; परन्तु इससे एक हानि होती है, वह यह कि हम इस भ्रममें रहते हैं कि […]