सुषमा स्वराजने भारतकी संस्कृतिको बढावा देनेमें हिन्दीकी भूमिकाकी सराहना की !


जनवरी ५, २०१९

विदेश मन्त्री सुषमा स्वराजने भारतकी संस्कृति और अखण्डताको बढावा देनेमें हिन्दी भाषाके स्थानकी प्रशंसा करते हुए शनिवार, ६ जनवरीको कहा कि यह अन्य देशों तथा सामाजिक प्रसार माध्यमोंमें तीव्रतासे लोकप्रिय हो रही है । स्वराजने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाके ८२ वें दीक्षांत समारोहको सम्बोधित करते हुए कहा कि यह संस्थान न केवल हिन्दीको बढावा दे रहा है, वरन अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओंको भी बढावा दे रहा है । उन्होंने कहा कि भाषा लोगोंको जोडनेमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । हिन्दी अन्य देशोंमें भी लोकप्रिय हो रही है । हिन्दीको प्रसारित करनेके लिए आधारशीला रखनेवाले राजनीतिक नेताओंकी सेवाओंको स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभाको हिन्दीमें सम्बोधित करनेवाले दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी प्रथम भारतीय नेता थे । इस अच्छी परम्पराको आगे ले जाते हुए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीने २०१४ में संयुक्त राष्ट्र महासभामें हिन्दीमें भाषण दिया था । वर्तमान प्रवृति संकेत करती है कि हिन्दी स्नातकोंके लिए नौकरीके अवसरमें वृद्धि हुई है । उन्होंने कहा कि हिन्दी आशाजनक जीवनका अवसर देती है, क्योंकि गत कुछ वर्षोंमें हिन्दीके कई प्रकाशन तथा समाचार पत्र आए हैं । केन्द्रीय मन्त्रीने यह भी कहा कि विदेशी राजयनिकोंमें हिन्दी सीखनेकी रूचि बढ रही है । उन्होंने कहा कि कई देशोंने भारत शासनसे हिन्दीका प्रचार करनेके लिए शिक्षा केन्द्र स्थापित करनेका अनुरोध किया है । उन्होंने कहा कि हिन्दी ‘ट्विटर और फेसबुक’ जैसे विभिन्न सामाजिक प्रसार माध्यमोंपर लोकप्रियता प्राप्त कर रही है । महात्मा गांधीने दक्षिणी राज्योंमें हिन्दीका प्रचार करनेके उद्देश्यसे १९१८ में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाकी स्थापना की थी ।

 

“हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, जो देव भाषा संस्कृतके निकटतम है, जिसकी वर्णमालासे ही भिन्न-२ बीजमन्त्रोंकी (हं, लं आदि) रचना हुई, जो भिन्न-२ शक्ति केन्द्रोंको जागृत करनेमें सहायक हैं । ऐसी देवभाषा तो भारतमें ही नहीं, वरन समूचे विश्वमें सम्मान योग्य है, परन्तु दुखद है कि आधुनिक मैकॉले शिक्षीत बुद्धिजीवियोंको अंग्रेजी भाषा, जिसका आध्यात्मिक महत्व शून्य है, जो न मस्तिष्कके किसी केन्द्रको जागृत करती है, उसे बोलनेमें गर्व होता है । जर्मनी, जापान, चीन सदृश देश सभी अपनी राष्ट्र भाषाका ही प्रयोग करते हैं, भटके हिन्दुओंको इन राष्ट्रोंसे सीख लेकर स्वभाषाका ही मान करना चाहिए !!”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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