नासा प्रमुखका प्रखर वक्तव्य, संस्कृत विश्वकी सबसे स्पष्ट भाषा, मैं स्वयं संस्कृत बोलनेका करता हूं अभ्यास !


जुलाई ५, २०१९

क्या आपको ज्ञात है कि नासा प्रमुख रोबर्ट लाइटफुट जूनियर स्वयं संस्कृत बोलनेका अभ्यास करते हैं और वो संस्कृत भाषाको सीख रहे हैं ? उन्होंने संस्कृतपर कहा था कि ये विश्वकी सबसे स्पष्ट भाषा है, और मुझे समझमें नहीं आता कि भारतीयोंने इसके महत्त्वको क्यों नहीं समझा और इसे छोड दिया !

आपको बता दें कि पहले भारतवर्षमें संस्कृत ही बोली जाती थी; परन्त आज अत्यधिक अल्प लोग संस्कृत बोल पाते हैं । संस्कृत बोलने वालोंकी संख्या भारतमें मात्र कुछ सहस्रमें है, आज हम आपको संस्कृतके बारेमें कुछ जानकारियां दे रहे हैं, जिससे आपको गर्व होगा –

१. संस्कृतको सभी भाषाओंकी जननी माना जाता है ।

२. संस्कृत उत्तराखण्डकी आधिकारिक भाषा है ।

३. अरब लोगोंके आनेसे पूर्व संस्कृत भारतकी राष्ट्रीय भाषा थी ।

४. नासाके अनुसार, संस्कृत पृथ्वीपर बोली जानेवाली सबसे स्पष्ट भाषा है ।

५. संस्कृतमें विश्वकी किसी भी भाषासे अधिक शब्द हैं । वर्तमानमें संस्कृतके शब्दकोषमें १०२ अरब ७८ कोटि, ५० लाख शब्द हैं !

६. संस्कृत किसी भी विषयके लिए एक अद्भुत कोष है ।  जैसे हाथीके लिए ही संस्कृतमें १०० से अधिक शब्द हैं ।

७. नासाके पास संस्कृतमें ताडपत्रोंपर लिखी ६०,००० पांडुलिपियां हैं, जिनपर नासा शोध कर रहा है ।

८. संस्कृत विश्वकी एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसे बोलनेमें जिह्वाकी सभी मांसपेशियोका उपयोग होता है ।

९. अमेरिकन हिन्दू विश्वविद्यालयके अनुसार संस्कृतमें बात करनेवाला मनुष्य रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोगोंसे मुक्त हो जाएगा । संस्कृतमें बात करनेसे मानव शरीरका तन्त्रिका तन्त्र सदैव सक्रिय रहता है, जिससे कि व्यक्तिका शरीर सकारात्मक आवेशके (Positive Charges) साथ सक्रिय हो जाता है ।

१०. संस्कृत ‘स्पीच थेरेपी’में भी सहायक है, यह एकाग्रताको बढाती है ।

११. संगणकद्वारा गणितके प्रश्नोंको हल करनेवाली विधि अर्थात Algorithms संस्कृतमें बने है ना कि अंग्रेजीमें !

१२. नासाके वैज्ञानिकोंद्वारा बनाए जा रहे छठीं और सातवीं जेनरेशनके ‘सुपर कम्प्यूटर’ संस्कृतभाषापर आधारित होंगें,  जो २०३४ तक बनकर तैयार हो जाएंगें ।

संस्कृत इतनी समृद्ध भाषा है कि नासाके वैज्ञानिक भी इसका अध्यन करते हैं, उनका कहना होता है कि संस्कृत भाषामें विज्ञानको और सरलतासे समझा जा सकता है ।

“इतने अनमोल सम्पदाको नष्ट कर बैठे हिन्दुओंकी ऐसी स्थिति हो चुकी है कि आज न ही घरके हैं और न ही घाटके ! और विचित्र बात है कि बुद्धिका भी ह्रास हो चुका है; क्योंकि यदि समझाने जाएं तो उनकी समझमें ही नहीं आता है । उल्टा कुतर्क करते हैं । ऐसी स्थितिको परिवर्तित करने हेतु ही अब हिन्दू राष्ट्रकी आवश्यकता है !- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

स्रोत : एनबीटी ऑनलाइन



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