मुझे मेरे गुरुके प्रति श्रद्धा है मात्र उनकी कुछ बातें मुझे स्वीकार्य नहीं होती ऐसा क्यों ?


gurukul

उत्तर : जब तक गुरु और शिष्यकी पूर्ण एकरूपता नहीं होती तब तक शिष्य अपने सद्गुरुके विचारोंसे सौ प्रतिशत सहमत नहीं होता | सद्गुरुसे पूर्ण एकरूपता सिद्ध हो जानेपर शिष्यको अपने गुरुकी सर्व बातें मन से स्वीकार्य होती हैं इससे पूर्व वह बुद्धिद्वारा गुरु की आज्ञाका पालन करना मेरा धर्मं है यह सोच उनकी आज्ञाका पालन करता हैं ! अतः शिष्यने अपनी गुरुभक्ति बढानी चाहिए | जब तक शिष्यका पूर्ण मनोलय और बुद्धिलय नहीं हो जाता तब तक शिष्यका अपना अस्तित्व होता है; अतः गुरुके प्रत्येक बातको मनसे स्वीकार करना कठिन होता है |-  तनुजा ठाकुर



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