अभियन्तासे लेकर प्रबन्धन स्नातकतक, १० सहस्र बने नागा साधु


जनवरी ५, २०१९

 

प्रयागराजमें इस समय कुंभका आयोजन चल रहा है । इस मध्य कई युवा नागा साधु भी बने हैं । गत सप्ताह हुए दीक्षा समारोहमें सहस्रों युवाओंने अपने बाल त्यागे और अपना स्वयंका पिण्डदान किया । रातभर चली अग्नि पूजाके पश्चात ये सभी प्राचीन परम्पराके अनुसार नागा साधु बने । विचित्र बात तो यह है कि इन लोगोंमें बडी संख्यामें अभियान्त्रिकी (इंजीनियरिंग) और प्रबन्धनके (मैनेजमेंटके) स्नातक (ग्रेजुएट) भी सम्मिलित हैं ।

नागा साधु बनने आए २७ वर्षीय रजत कुमार रायका कहना है कि उन्होंने कच्छसे मरीन अभियान्त्रिकीमें डिप्लोमा प्राप्त किया है । इसके लिए उन्हें अच्छी वेतन मिलता था; परन्तु उन्होंने संसारका त्यागकर नागा साधु बनना उत्तम समझा । इसके अतिरिक्त नागा साधु बने २९ वर्षीय शंभु गिरी यूक्रेनसे प्रबन्धनके स्नातक हैं । १८ वर्षीय घनश्याम गिरी उज्जैनसे १२वीं बोर्डके टॉपर हैं ।

सोमवारको इन सभीने मौनी अमावस्याके अवसरपर शाही डुबकी लगाई । सन्तों, महामण्डलेश्वरोंके साथ ही नूतन बने नागा संन्यासियोंमें डुबकी लगानेको लेकर सबसे अधिक आतुरता रही । नागा संन्यासियोंने धूनेके सामने बैठकर पूरी रात्रि ‘ऊं नम:शिवाय’का मन्त्र जप करते हुए पवित्र भभूत तैयार की । साथ ही गुरुमन्त्रका जप भी किया ।

इस कडे जीवनको जीनेके लिए १० सहस्र पुरुषों और महिलाओंने दीक्षा ली है । अखिल भारतीय अखाडा परीषदके (एबीएपी) अन्तर्गत ये लोग नागा साधु बने । ये परिषद भारतमें हिन्दू सन्तों एवं साधुओंका सर्वोच्च संगठन है ।

जूना अखाडाके मुख्य जनरल सेक्रेटरी महन्त हरि गिरीका कहना है कि एक बार जब कोई अखाडेका भाग बन जाए तो रास्ता कठिन हो जाता है । कुछ वर्षोंतक उम्मीदवारोंकी जांच की जाती है कि वह अपनी इच्छासे रह रहे हैं या किसी संकटसे बचनेके लिए यहां आए हैं । जब वह सभी परीक्षाएं पास कर लेते हैं और हमें सन्तुष्ट करते हैं, तभी वह नागा ठहराए जाते हैं ।

घनश्याम गिरीका कहना है कि उसे बोर्डकी परीक्षाएं पास करनेके पश्चात अपने उद्देश्यका भान हुआ । उस समय उसकी आयु १६ वर्ष की थी, जब वह अपने गुरु महन्त जयराम गिरीके आश्रम गया । उसका कहना है कि वह अपने गुरुकी कृपाके कारण दो वर्ष पश्चात नागा बननेके लिए दीक्षा लेने कुम्भ समारोहमें आया है ।

 

स्रोत : अमर उजाला



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